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  • सर्वाइवर्स ऑफ़ द अर्थ

    सर्वाइवर्स ऑफ़ द अर्थ
    • ₹200.00
    • by Ashfaq Ahmad (Author)
    • Book: Survivors of the Earth
    • Paperback: 200 pages
    • Publisher: Gradias Publishing House
    • Language: HindiISBN-13:  978-81-948718-5-9
    • Product Dimensions: 13.95 x 1.50 x 21.59 cm

    कहानी है उस दौर की जब हम इंसानों ने प्रकृति के साथ खिलवाड़ करते-करते उसे प्रतिक्रिया देने, पलटवार करने पर मजबूर कर दिया था और प्रकृति जब अपनी पर आती है तो इंसान जैसी ताकतवर प्रजाति का भी उसके सामने कुछ भी नहीं। 

    कहानी के केंद्र में चार लोग हैं जो दुनिया के चार अलग-अलग हिस्सों में रहते हैं। एक राजस्थान भारत का रहने वाला विनोद है— जो अपने आप से संघर्ष कर रहा है। उसे डिग्री हासिल करने के बाद जिंदगी की हकीकत से सामना करने के बाद अब अफसोस है कि उसने अपनी ऊर्जा अन्न हासिल करने के पीछे क्यों न लगाई, बजाय ज्ञान हासिल करने के… और वह पश्चाताप करने के लिये मां और बहनों के जिस्मों से गुजर कर उसके पेट तक पहुंचते अन्न को त्याग कर चल देता है जिंदगी के संघर्षों का सामना करने। 

    दूसरी ऑकलैंड न्यूजीलैण्ड में पैदा होने वाली एमिली है— जिसे न सिर्फ दूसरे कहते हैं बल्कि खुद उसने भी स्वीकार कर रखा है कि वह मन्हूस है। उसकी ईश्वर में कोई आस्था नहीं थी और न ही वह किस्मत को मानती थी लेकिन कभी इस पहेली को सुलझा नहीं पाई थी कि क्यों कोई अदृश्य शक्ति जैसे लगातार उस पर नजर रखती है और उसके बनते काम भी बिगाड़ देती है। वह इतनी मन्हूस थी कि मरने की कोशिशों में भी इस तरह नाकाम हुई थी कि जिंदगी में सजा के तौर पर उसका खामियाजा भुगतना पड़ा था। कभी अमीर कारोबारी रहा पिता उसकी वजह से होने वाले नुकसानों की भरपाई करते-करते कंगाली की कगार पे पहुंच गया था तो उसने एमिली को घर से ही निकाल दिया था और अब वह आस्ट्रेलिया और आसपास के छोटे-छोटे देशों में रोजी रोटी के पीछे भटकती फिर रही थी लेकिन बुरे इत्तेफाक कहीं भी उसका पीछा नहीं छोड़ रहे थे।

    तीसरा है माली में रहने वाला सावो— जो कभी नाईजर नदी के किनारे बसे एक खुशहाल कबीले में रहा करता था लेकिन बदलते मौसम ने उसे ऐसे ठिकाने लगाया था कि अब उसके लिये दाने-दाने के पीछे संघर्ष था और जो थोड़ा बहुत उसे मिल भी रहा था, उसकी जड़ में उसकी बहन थी, जिसके लिये उसने मान लिया था कि बहन पेट से बड़ी नहीं हो सकती। वह उस जमीन पर था जहाँ कोई फसल नहीं थी और जो आयतित खाद्यान्न पर निर्भर था लेकिन बदलते मौसम ने पूरी दुनिया में ऐसी तबाही फैला रखी थी कि खाद्यान्न उत्पादक देश भी अब बेबस हो गये थे और नतीजे में वे देश जो आयतित खाद्यान्न पर निर्भर थे, एक-एक दाने के लिये खूनी संघर्ष कर रहे थे। सावो भी बहन और अमेरिकी बेस के सहारे जो कुछ पा रहा था, वह इसी संघर्ष के हत्थे चढ़ जाता है और उसे फिर चल देना पड़ता है किसी नयी जमीन की तरफ।

    चौथा कैरेक्टर है इजाबेल— जो कैनेडा की रहने वाली है और जहाँ एक तरफ तीन चौथाई दुनिया संघर्षों में फंसी थी, वहीं वह उन चंद लोगों में थी जिनके लिये इस बर्बादी में भी बेहतरी थी। इजाबेल हद दर्जे की कन्फ्यूज्ड कैरेक्टर है जो लड़कों की जिंदगी भी जीना चाहती है लेकिन अपने स्त्रीत्व से भी मुक्त नहीं होना चाहती और अंततः एक दोहरी जिंदगी जीती है। जहाँ निजी पलों में वह एक लड़की होती है, वहीं बाहरी दुनिया में वह एक लड़का होती है। उसके लिये अगर कोई चीज बुरी थी तो वह था मौसम… कनाडा ऊपरी ग्लोब पर होने की वजह से बेशुमार चक्रवाती तूफानों की चपेट में रहता है और बढ़ता समुद्री जलस्तर जहाँ बाकी दुनिया के तटीय शहरों को निगल रहा था— वहीं उसके शहर को भी उसने आधा कर दिया था और एक चक्रवाती तूफान के साथ जिस दिन पूरी तरह गर्क कर देने पर उतारू था। वह शहर छोड़ कर चल तो देती है लेकिन बदनसीबी ऐसी कि कुछ ऐसे लोगों के चक्कर में फंस जाती है जो मानव अंगों के व्यापारी थे।

    चारों अपने-अपने सफर में हैं कि तभी प्रकृति अपना तांडव शुरू करती है और नव निर्माण से पूर्व के विध्वंस का सिलसिला शुरू हो जाता है। वह विध्वंस जो जमीनों को उखाड़ देता है, पहाड़ों को तोड़ देता है और समुद्रों को उबाल देता है। कुदरत हर निर्माण को ध्वस्त कर देती है और पृथ्वी एक प्रलय को आत्मसात कर के जैसे अपनी पिछली केंचुली को उतार कर एक नये रूप का वरण करती है। 

    यह चारों किरदार किस तरह मौत से लगातार जूझते और संघर्ष करते इंसानी जींस को इस कयामत से गुजार कर अगले दौर में ले जाते हैं और नयी पीढ़ी की बुनियाद रखते हैं… यह जानने के लिये आपको इस कहानी के साथ जीना पड़ेगा।  

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  • CRN-45

    CRN-45
    • ₹200.00
    • by Ashfaq Ahmad (Author)
    • Book: CRN-45
    • Paperback: 200 pages
    • Publisher: Gradias Publishing House
    • Language: Hindi
    • ISBN-13:  978-81-948718-6-6
    • Product Dimensions: 13.95 x 1.50 x 21.59 cm

    जिस हिसाब से दुनिया में बेतहाशा भीड़ बढ़ रही है… कार्बन उत्सर्जन बढ़ रहा है… लोग प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध उपभोग करके उन्हें खत्म कर रहे हैं… और लगातार अपने लिये स्पेस बढ़ाते हुए बाकी सभी क्रीचर्स के लिये जगह और मौके सीमित करते जा रहे हैं, जिनसे हमारा इको सिस्टम प्रभावित हो सकता है… तो  ऐसे में एक दिन कुदरत भी कोई मौका निकाल कर बदला लेने पर उतर आये तो?

    अपने देश को देखिये… देश के लोगों को देखिये… क्या इन्हें एक नागरिक के तौर पर अपनी भूमिका की समझ है? क्या एक इंसान के तौर पर अपनी प्राथमिकताओं का पता है इन्हें? आपको व्यवस्था वैसी ही मिलती है जैसे आप होते हैं और अगर आप खुद ही समझदार और जागरूक नहीं हैं— तो यह तय है कि आपको सिस्टम भी वैसा ही लापरवाह मिलेगा।

    ऐसी हालत में कोई डेडली वायरस इनवेशन हो तो? फिर वह वायरस नेचुरल हो या बायोवेपन… उससे ज्यादा बड़ा सवाल यह है कि क्या हमारी व्यवस्था उस अटैक को संभाल पायेगी? क्या हमारे द्वारा चुनी गयी सरकारों ने हमें वह सिस्टम दिया है जो किसी मेडिकल इमर्जेंसी को संभाल सके? शायद नहीं… कल्पना कीजिये कि ऐसे ही किसी विश्वव्यापी वायरस संक्रमण के सामने हमारी व्यवस्था कैसी लचर साबित होगी और करोड़ों लोग अकाल मृत्यु को प्राप्त होंगे।

    सीआरएन फोर्टी फाईव ऐसे ही एक विश्वव्यापी संक्रमण की कहानी है— जिसका शिकार हो कर दुनिया की तीन चौथाई आबादी खत्म हो गयी थी और गिने-चुने विकसित देशों को छोड़ कर सभी देशों की व्यवस्थायें इस त्रासदी के आगे दम तोड़ गयी थीं और त्रासदी से उबरने के बाद भी सभी सिस्टम कोलैप्स हो जाने की वजह से ऐसी अराजकता फैली थी कि लाखों सर्वाइव करने वाले लोग फिर भी मारे गये थे… और बचे खुचे लोगों में करोड़ों की भीड़ तो वह थी जो इस संक्रमण का शिकार हो कर अपनी मेमोरी पूरी तरह खो चुकी थी और ताजे पैदा हुए बच्चे जैसी हो गयी थी।

    यह वह मौका था जिसने उन सभी दबंग, बाहुबली और ताकतवर लोगों के लिये संभावनाओं के द्वार खोल दिये थे जो इस त्रासदी के बाद भी अपनी ताकत सहेजे रखने में कामयाब रहे थे। उन्होंने व्यवस्थाओं को अपने हाथ में लेकर उनकी सूरत बदल दी… देशों के बजाय ढेरों टैरेट्रीज खड़ी हो गयीं और उन्होंने बची खुची आबादियों को नियंत्रित कर लिया।

    लेकिन क्या यह व्यवस्थायें भी हमेशा कायम रह सकती थीं… एक न एक दिन तो कहीं न कहीं बगावत का बिगुल फूंका जाना तय था और यह कहानी एक ऐसी ही बगावत की है, जो दुनिया को वापस पहले जैसा बना देने की कूवत तो रखती है… लेकिन सभी पिछली गलतियों से सबक लेकर एकदम नये रूप में… उस रूप में जो प्रकृति के साथ संतुलन बना कर चल सके और बाकी सभी क्रीचर्स के सह-अस्तित्व को पूरा सम्मान देते हुए उन्हें उनके हिस्से का स्पेस और मौके उपलब्ध करा सके और एक नया एडवांस डेमोक्रेटिक सिस्टम स्थापित कर सके।

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  • द ब्लडी कैसल

    द ब्लडी कैसल
    • ₹250.00
    • by Ashfaq Ahmad (Author)
    • Book: The Bloody Castle
    • Paperback: 250 pages
    • Publisher: Gradias Publishing House
    • Language: Hindi
    • ISBN-13:   978-81-948718-1-1
    • Product Dimensions: 13.95 x 1.75 x 21.59 cm

    ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिये टेन मिलियन डॉलर की ईनामी रकम वाला एक रियलिटी शो ‘द ब्लडी कैसल’ लांच होता है जो हॉरर थीम पर होता है। यह शो सेशेल्स के एक निजी प्रापर्टी वाले हॉगर्ड आइलैंड पर आयोजित होता है जहां हांटेड प्लेस के तौर पर मशहूर किंग्समैन कैसल में कंटेस्टेंट्स को सात दिन और सात रातें गुजारनी होती है और जो भी कंटेस्टेंट सबसे बेहतर ढंग से सामने आने वाली हर चुनौती से लड़ेगा, उस हिसाब से उसे वोट मिलेंगे… सबसे ज्यादा वोट पाने वाला विनर होगा।

    ‘द ब्लडी कैसल’ टीम, कैसल या आइलैंड के डरावने माहौल के सिवा भी अपनी तरफ से विज्ञान और तकनीक के इस्तेमाल के साथ उन्हें डराने की हर मुमकिन कोशिश करेगी कि उनकी हिम्मत का सख़्त इम्तिहान लिया जा सके। उनके हर पल को रिकार्ड करने के लिये कैसल समेत न सिर्फ़ पूरे आइलैंड पर बेशुमार कैमरे होंगे, बल्कि ड्रोन कैमरों की मदद भी ली जायेगी और उनकी सांसों पर भी कान बनाये रखने के लिये उनके गलों में एडवांस किस्म के रेडियो कॉलर पहनाये जायेंगे। उन कंटेस्टेंट्स से टीम कोई भी डायरेक्ट संवाद नहीं करेगी, न ही उन्हें किसी तरह की मदद उपलब्ध कराई जायेगी।

    कंटेस्टेंट्स को यह सात दिन अपने ढंग से बिताने के लिये पूरी छूट होगी और वे चाहें तो रेप और मर्डर तक कर सकते हैं।शो के पहले सीजन के लिये भारत के अलग-अलग शहरों से आठ लोग चुने जाते हैं जो अलग-अलग फील्ड से थे। दिखने में यही लगता है कि उनका सलेक्शन रैंडमली हुआ है और वे सभी एक दूसरे से एकदम अनकनेक्टेड लोग थे। सारे नियम समझाने के बाद उन्हें आइलैंड पर पहुंचा दिया जाता है और उनका सफ़र शुरू होता है।

    उन्हें पहले दिन तो यह एक रियलिटी शो ही लगता है, जहां दिन से लेकर रात तक उन्हें डराने की हल्की-फुल्की कोशिश होती है… लेकिन अगले दिन से ही वे कनफ्यूज होने लगते हैं कि यह वाकई कोई शो था और उन्हें डराने वाली सारी कोशिशें मैनमेड एफर्ट्स थीं।

    तीसरे दिन से वे वाक़ई डरना शुरू कर देते हैं और उन्हें अहसास होता है कि दरअसल वहां वाकई पैरानार्मल एक्टिविटीज हो रही थीं और ‘द बल्डी कैसल’ टीम का कैसल की बुरी शक्तियों से एक समझौता हुआ था। शो के नाम पर उनका शिकार बनाया जा रहा था और एंटरटेनमेंट के नाम पर उनकी दुर्दशा को बेचा जा रहा था। उन्हें यह भी अहसास होता है कि वे रैंडमली नहीं चुने गये, बल्कि उन्हें टार्गेट किया गया है और उनसे किसी तरह का बदला लेने के लिये यहां लाया गया है।

    वे भले दिखने में एक दूसरे से एकदम असम्बंधित हों, मगर अतीत में उनके बीच कोई ऐसा कॉमन पाप घटित हुआ है जिससे वे सब जुड़े हुए हैं और शो का आर्गेनाइज़र उसी पाप का शिकार हुआ है जो अब इतने यूनीक तरीके से उनसे बदला ले रहा है।तीसरी रात जब एक कंटेस्टेंट की जान चली जाती है, तब उन्हें अपनी बातों पर यक़ीन हो जाता है कि वे सब यहां मरने के लिये छोड़े गये हैं।

    तब वे दिन भर आपस में चर्चा करते शाम को इस नतीजे पर पहुंच जाते हैं कि आखिर वह कौन सा पाप था जिसके तार उन सबसे जुड़े हुए थे और तब उन्हें वह शख़्स नज़र आता है जिसके बदले का शिकार वे हो रहे थे। उन्हें यक़ीन हो जाता है कि वह जगह वाक़ई हांटेड थी और बदले के नाम पर उन्हें वहां मारने ही लाया गया था। उनकी तकलीफ, उनके संघर्ष और उनकी मौत को रिकार्ड करके शो के नाम पर पूरी दुनिया में बेचा जा रहा था।

    वे जिंदगी से नाउम्मीद हो जाते हैं, लेकिन उस जगह से निकलने या टीबीसी टीम से लड़ने की उनकी हर कोशिश नाकाम हो जाती है।उनकी हर अगली रात कयामत साबित होती है और लगातार खौफ से जूझते सातवें दिन तक उनमें कई लोग मारे जाते हैं, लेकिन उनमें से किसी की भी जान सीधे शो वालों ने नहीं ली थी, बल्कि वे सभी अपनी ही वजहों से मारे गये थे… अब यहाँ सवाल उठता है कि क्या वाकई ऐसा ही था— जैसा उन्हें दिख रहा था, या फिर इस सारे तमाशे की जड़ में कुछ और था? क्या वाक़ई यह शो फेयर था या अपने किस्म का अनोखा बदला, जहां कोई अपने दुश्मनों को इस तरह खत्म भी कर रहा था और उन मौतों को करोड़ों में बेच भी रहा था? क्या था ‘द ब्लडी कैसल’ का सच? जानने के लिये पढ़िये… किताब अमेजाॅन, किंडल और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है..

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  • सावरी

    सावरी
    • ₹250.00
    • by Ashfaq Ahmad  (Author)
    • Book: Saavri
    • Paperback: 250 pages
    • Publisher: Gradias Publishing House
    • Language: Hindi
    • ISBN-13:  978-81-948718-3-5
    • Product Dimensions: 13.95 x 1.75 x 21.59 cm

    यह कहानी सौमित्र बनर्जी की आत्मकथा के रूप में लिखा एक ऐसा दस्तावेज है, जो अंत में एक रोमांचक मोड़ के साथ जब अपनी परिणति पर पहुंचता है तो इस कहानी के उस मुख्य पात्र को यह पता चल पाता है कि रियलिटी में वह अपने कमरे के अंदर अपने बेड पर सोता ही रहा था, लेकिन एक वर्चुअल दुनिया में उसने एक ऐसे रहस्यमयी शख़्स सौमित्र बनर्जी के जीवन के बारे में सबकुछ जान लिया था— जो एक अभिशप्त जीवन को जीते हुए उसी के ज़रिये अपने जीवन से मुक्ति पाता है। 

    कहानी में जो भी है, वह भले एक आभासी दुनिया में चलता है लेकिन कुछ अहम किरदारों का गुज़रा हुआ अतीत है— जिसमें क़दम-क़दम पर रहस्य और रोमांच की भरपूर डोज मौजूद है। सभी कैरेक्टर अपनी जगह होते तो वास्तविक हैं लेकिन वे रियलिटी में रहने के बजाय दिमाग़ के अंदर क्रियेट की गई एक वर्चुअल दुनिया में रहते हैं, जहां उनकी शक्तियां एक तरह से असीमित होती हैं।

    यह एक ऐसे मैट्रिक्स की कहानी है, जो बाहर की हकीक़ी दुनिया में नहीं चलता, बल्कि दिमाग़ के अंदर बनाई गई ऐसी दुनिया में चलता है— जहां कहानी के मुख्य ताकतवर पात्र दूसरे किरदारों को उनकी मर्ज़ी के खिलाफ अपनी उस दुनिया में खींच लेते हैं, जहां वे उनके साथ रोमांस भी कर सकते हैं और उन्हें शारीरिक चोट भी पहुंचा सकते हैं। यहां तक कि वे उनकी जान भी ले सकते हैं।

    अंग्रेज़ दम्पति के यहां पलते सौमित्र बनर्जी को उसके बीसवें बर्थडे की पार्टी कर के घर लौटने के दौरान एक रहस्मयी लड़की सावरी मिलती है, जो उसे उसके जन्म की हकीक़त बताती है। वह उसे उसके पिता के बारे में बताती है और खास उस दिन के लिये उसके पिता की तरफ़ से सुरक्षित की गयी डायरी तक उसे पहुंचाने में मदद करती है— जो उसके पिता सौमिक बनर्जी ने उसके लिये छोड़ी थी।

    डायरी से उसे अपने पिता की हकीक़त पता चलती है कि वह कलकत्ते के एक रसूखदार परिवार से सम्बंधित था लेकिन अपने ऊलजलूल शौक के चलते परिवार से अलग हो गया था। उसने असम के अंदरूनी जंगलों में पाई जाने वाली एक मायावी शक्ति अगाशी को साधने में अपना जीवन ही दांव पर लगा दिया था और अपनी उस कोशिश के पीछे इस हाल में पहुंच गया था कि अब न ज़िंदों में ही रहा था न मुर्दों में।

    उसके साथ अतीत में कुछ उसी के जैसे जुनूनी और काली शक्तियों को साधने के शौकीन लोगों ने, अगाशी को साधने की दिशा में एक ज़रूरी शक्ति पाने की गरज से अफ्रीका के गहरे अंधेरे जंगलों की यात्रा की थी, और उन आदमखोर आदिवासियों से वह ताक़त पाने की कोशिश में सौमिक बनर्जी के सिवा उसके सारे यात्री एक सहरअंगेज़ तजुर्बे के साथ मारे गये थे— लेकिन सौमिक वह ताक़त पाने में फिर भी कामयाब रहा था और अकेला ज़िंदा वापस लौटा था।

    इसके बाद उसने असम के जंगलों की यात्रा की थी लेकिन वहां अगाशी की सत्ता चलती थी, जो वास्तविक दुनिया में कहीं थी ही नहीं। वह हज़ारों साल पहले मर चुकी एक ऐसी राजकुमारी थी जो एक अलग ही आयाम में रहती थी। उसके पास उन निशाचरों की एक बेहद खतरनाक सेना थी— जो उसके लिये लगातार शिकार लाते थे। वे सब शिकार इंसानों के ब्लड और फ्लेश पर पलते थे और इससे ही ताक़त हासिल करते थे और इसी तरह से वे ख़ुद को अमर बनाये हुए थे।

    सौमिक उनसे लड़ने जाता है, अगाशी को साधने जाता है ताकि उसकी बेशुमार शक्तियां और अमरत्व हासिल कर सके… उसकी भरपूर कोशिश के बाद भी उसकी लड़ाई आधे-अधूरे में खत्म होती है। उसे अगाशी की शक्तियां तो नहीं मिलतीं, न ही अगाशी बाकी शिकारों की तरह उसे कंज्यूम कर पाती है— लेकिन उसे वह अमरत्व ज़रूर मिल जाता है, जो उसका एक लक्ष्य था… लेकिन उस अमरत्व के अभिशाप को जब सौमिक झेलता है तो उसे मुक्ति की ख्वाहिश पैदा हो जाती है और इसी ख्वाहिश के चलते उसने संयोग से पैदा हुए बेटे को अपने जीवन के अनुभवों से भरी डायरी के साथ कलकत्ते में सुरक्षित करता है।

    अब वह वक़्त आ चुका था, जहां उसके बेटे सौमित्र को पिता का अधूरा काम पूरा करना था और अगाशी पर विजय हासिल करनी थी— और इसीलिये उसे अब असम के उन जंगलों में बुलाया जा रहा था। सावरी उसके पिता के दूत के तौर पर उसे बुलाने आई थी— लेकिन यह पूरा सच नहीं था। वह ख़ुद को इस तरह जाने के लिये तैयार नहीं कर पाता लेकिन रवानगी का वक़्त आने तक वह जैसे किसी जादू से तैयार हो जाता है— उसे अहसास नहीं हो पाता कि उसकी रवानगी में भी उसकी अपनी इच्छा का कोई रोल नहीं था बल्कि उसे कहीं और से तैयार किया गया था।

    जब वह इस सफर पर निकलता है तब मलिंग के रूप में एक नये कैरेक्टर की एंट्री होती है, जो अपने चेलों के साथ उसे अपने सपनों में खींच लेता है और उसे मारने की कोशिश करता है। क़दम-क़दम पर उसकी तरफ़ से मिलती चुनौतियों के बीच सावरी लगातार उसकी मदद करती है और इन कोशिशों के अंजाम में उसे ख़ुद को साधने-संवारने के वह दुर्लभ मौके मिलते हैं कि वह अपने आप को अगाशी से मुकाबले के लिये तैयार कर पाता है।

    अब असम के सफर पर आखिर किसने तैयार किया था उसे यूं अपनी ज़िंदगी दांव पर लगाने को? सावरी अगर वह नहीं थी, जो ख़ुद को जता रही थी तो फिर और कौन थी? और सौमित्र को अपने साथ ले जाने के पीछे उसका क्या मकसद था? मलिंग कौन था और भला वह सौमित्र की जान के पीछे क्यों पड़ा था? जो अगाशी वास्तविक दुनिया में थी ही नहीं, उसे जीतना भला कैसे संभव था? जहां वह थी, वहां बस उसी की मर्ज़ी चलती थी, वह उसी की बनाई आभासी दुनिया होती थी, जहां वह दूसरे वास्तविक दुनिया के लोगों को खींच कर कंज्यूम कर लेती थी— भला ऐसी शक्ति से कोई इंसान कैसे पार पा सकता था? सौमित्र के इस सफर का अंजाम क्या हुआ? क्या वह अगाशी जैसी ताक़त का सामना कर सका?

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  • मिरोव चैप्टर 3

    • ₹250.00
    • by Ashfaq Ahmad  (Author)
    • Book: Mirov Chapter 3
    • Paperback: 235 pages
    • Publisher: Gradias Publishing House
    • Language: Hindi
    • ISBN-13:  978-81-959837-0-4
    • Product Dimensions: 13.95 x 1.75 x 21.59 cm

    वे सारे एक अलग यूनिवर्स में पहुंच तो गये थे लेकिन यह दुनिया उनकी देखी, जानी, समझी दुनिया से बिलकुल उलट थी, जो उनकी कल्पना से भी परे थी और चूंकि उनके दिमागों के लिये वह सब ऐसी नई चीज़ें थीं, जो उनके दिमागों की प्रोसेसिंग क्षमताओं से बाहर थीं तो वे उन चीज़ों को जाने-पहचाने खाके में फिट कर के देखते थे— जबकि हकीक़त में वे कुछ और होती थीं, जिसे वे ठीक से समझ ही नहीं सकते थे और इस वजह से भी वे कई बार ज़बर्दस्त धोखा खाते हैं। सच यह था कि उनका दिमाग़ उन्हें जो भी दिखा रहा होता था, वह जितना सच होता था— उतना ही काल्पनिक भी होता था।

    उस यूनिवर्स में कोई स्पेस नहीं था, मगर असीम दूरियां ज्यों की त्यों थीं और उन्हें उनके अपने यूनिवर्स की तरह इन दूरियों को तय करने के लिये वैसे साधनों की ज़रूरत नहीं थी, जो वह जानते थे बल्कि वहां तो पृथ्वी वासियों के हिसाब से पलक झपकते ही वे दूरियों को तय कर लेते थे। उस पूरे यूनिवर्स में अलग-अलग पॉकेट बने हुए थे और लगभग हर पॉकेट में कोई न कोई प्रजाति अपना वर्चस्व कायम किये थी लेकिन पस्कियन, ग्रेवोर्स और स्कैंडीज के रूप में वहां तीन प्रजातियां ऐसी भी थीं, जो कुल मिला कर आधे से ज्यादा यूनिवर्स को कब्ज़ाये थीं और आपस में एक दूसरे की कट्टर प्रतिद्वंद्वी थीं।

    उन सबके बीच एक छोटे पॉकेट में एक ऐसी प्रजाति एड्रियूसिनॉस भी थी, जो वैज्ञानिक तौर पर सबसे ज्यादा तरक्कीशुदा थी। वे बाकियों से बहुत आगे का ज्ञान रखते थे… उन्हें अपने उस यूनिवर्स में खामी लगती थी और वे इस डिजाइन को और बेहतर करना चाहते थे। इस सिलसिले में उन्होंने सालों के जतन से एक ऐसा कॉस्मिक इंजन तैयार किया था जो उनके यूनिवर्स को रीडिजाइन कर सकता था, लेकिन  परीक्षण के दौरान पता चलता है कि वह शैडो यूनिवर्स को कोलैप्स कर सकता था। इसी एक्सपेरिमेंट की वजह से उस शैडो यूनिवर्स में तीस करोड़ लाईट ईयर्स में फैला ‘द बूटीस वायड’ बना था।

    यह जान कर वे इस त्रुटि को दूर करने में जुट जाते हैं, लेकिन इस एक्सपेरिमेंट की वजह से इस कॉस्मिक इंजन की ख़बर पस्कियन, ग्रेवोर्स और स्कैंडीज को भी हो जाती है और वे पहले तो यूनिवर्स को रीडिजाइन करने के ही खिलाफ थे, फिर यह होता भी तो वे इसे अपने हिसाब से डिजाइन करना चाहते थे… इसी बिना पर तीनों आपसी प्रतिद्वंदिता भुला कर एक साथ एड्रियूसिनॉस पर हमला कर देते हैं। उनके बीच उनके अपने यूनिवर्स के इतिहास का सबसे भयानक युद्ध होता है, जहां वैज्ञानिक तरक्की में सबसे आगे होने के बावजूद भी वे तीनों प्रतिद्वंद्वियों की संयुक्त ताक़त के आगे हार जाते हैं और उन्हें पूरी तरह तबाह कर दिया जाता है।

    लेकिन अपनी निश्चित हार देख कर वे उस कॉस्मिक इंजन को चार हिस्सों में तोड़ देते हैं, ताकि वह असेंबल हो कर ही एक्टिव हो सके और उन चार हिस्सों को अपने यूनिवर्स के चार बीहड़ और सबसे ख़तरनाक इलाकों में छुपा देते हैं… तब उन्हें उम्मीद होती है कि एक दिन वे फिर संवरेंगे, वापसी करेंगे और रीयूनाइट हो कर दुबारा अपने अधूरे काम को पूरा करेंगे। उन्हें तबाह कर चुकने के बाद पस्कियन, ग्रेवोर्स और स्कैंडीज उन पार्ट्स की तलाश में निकलते हैं और एक-एक पार्ट हासिल करने में कामयाब रहते हैं— लेकिन इस तरह वह किसी एक के काम का नहीं था और तीनों कभी एक मंच पर आना नहीं चाहते थे इस मकसद के लिये कि किसी तरह उस चौथे पार्ट को भी हासिल किया जाये और किसी एक के हिसाब से यूनिवर्स को रीडिजाइन किया जाये।

    एक लंबी शांति के बाद वे इन पार्ट्स को एक दूसरे से हासिल करने की कोशिश शुरू करते हैं, जिनमें स्कैंडीज और ग्रेवोर्स का लक्ष्य तो अपने हिसाब से यूनिवर्स को डिजाइन करना था, जबकि पस्कियन इसलिये उस कॉस्मिक इंजन को हासिल करना चाहते थे क्योंकि वे यूनिवर्स में कोई बदलाव नहीं चाहते थे और इसकी वजह से इंसानों वाला यूनिवर्स भी कोलैप्स हो जाता जो उन्हें मंजूर नहीं था… तो वे उन इंसानों की मदद इसीलिये चाहते थे कि वे उस यूनिवर्स में अनएक्सपेक्टेड और अनकनेक्टेड जीव थे जो उन बाकी पार्ट्स को हासिल करने में कारगर साबित हो सकते थे।

    लेकिन जब आँखों का देखा सबकुछ सच नहीं था और दिमाग़ काफी कुछ अपनी तरफ से गढ़ा व्यू उन्हें दिखाता था— तो क्या गारंटी थी कि उनके कान जो कुछ सुन रहे थे और दिमाग़ जो समझ पा रहा था, वह उतना ही रियल था जितना उन्हें लग रहा था। उसमें भी तो काफी कुछ भ्रम और छलावा साबित होने की गुंजाइश थी… और अंत-पंत सच भी यही तो साबित हुआ था।

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  • मिरोव चैप्टर 2

    मिरोव चैप्टर 2
    • ₹250.00
    • by Ashfaq Ahmad  (Author)
    • Book: Mirov Chapter 2
    • Paperback: 245 pages
    • Publisher: Gradias Publishing House
    • Language: Hindi
    • ISBN-13:  978-81-959837-2-8
    • Product Dimensions: 13.95 x 1.75 x 21.59 cm

    केविन के रूप में अचानक एक ऐसा आदमी नज़र में आता है जो सौ साल पहले किसी इनक्वायरी पर निकला था, लेकिन ग़ायब हो जाता है और लगभग सौ साल बाद प्रकट होता है, जबकि उसके हिसाब से उसने चार दिन का वक्त ही कहीं गुमशुदगी में गुजारा था… अब ऐसा कैसे था, यह समझने के लिये सेटी (सर्च फॉर एक्स्ट्रा टेरेस्ट्रियल इंटेलिजेंस) सिंथिया के नेतृत्व में एंशेन्ट एस्ट्रोनॉट थ्योरिस्ट के कुछ लोगों को मिला कर एक मिशन लांच करती है और वे केविन को ले कर एलियन एक्टिविटीज के सबूत खोजने वापस कुमाऊँ की घाटियों में पहुंचते हैं।

    एमसाना की डूबी रकम की रिकवरी के लिये एवलिन के बनाये दबाव के रियेक्शन में वह अमेरिकी ताकतवर लॉबी एकदम पलटवार करते एमसाना और मथायस के खिलाफ एक्शन शुरू करवा देती है और एमसाना से एक सीधी जंग शुरू हो जाती है जिसमें जंग का मैदान न्यूयार्क शहर बनता है और इस जंग का खात्मा भी एक ऐसी एंटिटी के दखल से होता है जो इस दुनिया की तो नहीं थी— और जो उन्हें भविष्य के खतरों के प्रति सचेत करने की कोशिश कर रही थी।

    बेनवॉ कार्प्स वालों ने एक दूसरे मिरोव फ्रेंको के रूप में अपना खुद का एक एडगर तैयार कर लिया था, जो उन्हें शकराल की घाटी तक पहुंचा सकता था और वे एमसाना से अमेरिकियों की जंग छिड़ने के साथ ही अपनी टीम भारत के लिये रवाना तो कर देते हैं— मगर खुद इस जंग की बड़ी कीमत चुकाते हैं, जबकि एवलिन लाख कोशिश के बावजूद अमेरिकन गवर्नमेंट के हत्थे नहीं आती और एडगर समेत अपनी उस टीम को अमेरिका से निकाल ले जाती है जिसे शकराल पहुंचना था।

    करीब चार सौ साल बाद एक ऐसा इवेंट फ्रांस सरकार की नज़र में आता है, जहां वे धरोहरें बेची जा रही थीं जिन्हें चुरा कर कभी शकराल ले जाया गया था और तब से वे दुनिया की नज़रों से छुपी रही थीं… और यह सब सामने आता है एक खरीदार की हत्या से, जिसके बाद वे इंग्लैंड और नीदरलैंड के साथ मिल कर एक संयुक्त मिशन लांच करते हैं जो इन नीलामियों के कर्ता-धर्ता का पता लगायें और उनसे अपनी चीज़ें वापस हासिल करें। इस व्यक्ति के तार भी भारत और नार्थ कुमाऊँ से जुड़ते हैं और उनकी टीम को भारत की यात्रा करनी पड़ती है।

    मीडियम में छपे एक आर्टिकल से गंगा, राणा और सारंग के साथ शकराल की सारी स्टोरी दुनिया की नज़र में आ जाती है और तब भारत को भी इसमें दिलचस्पी लेनी पड़ती है, लेकिन उनकी जानकारी के हिसाब से नार्थ कुमाऊँ में न ही शकराल नाम की कोई जगह थी और न ही उनकी जानकारी में सारंग नाम का ऐसा कोई आदमी था, जो सैकड़ों साल जिंदा रहा हो, लेकिन जब उन घाटियों में इतने लोग दिलचस्पी ले रहे थे तो वे पीछे नहीं हट सकते थे और वे भी एक मिशन लांच करते हैं— इन बातों की सच्चाई परखने के लिये।

    अब नार्थ उत्तराखंड में वे पांच अलग-अलग पार्टियां पहुंचती हैं और सही डेस्टिनेशन की तलाश में भटकते एक दूसरे से भिड़ती रहती हैं, लेकिन उनके सफ़र का खात्मा जहां होता है, वहां यह दुनिया ही खत्म थी और वहीं से शुरुआत होती है एक ऐसी नई दुनिया की, जो उनकी कल्पनाओं से भी परे थी। जिसके बारे में उन्होंने किसी वैज्ञानिक के मुंह से भी कभी ऐसा कुछ नहीं सुना था और जिसे ठीक से समझने के लिये उन्हें खुद भी ट्रांसफार्म होना पड़ता है।

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  • टाईम मशीन

    टाईम मशीन

    क्या टाईम मशीन का अविष्कार संभव है?

    वैसे यह बड़ा दिलचस्प ख्याल है कि अगर कोई टाईम मशीन बना ली जाये तो क्या हम उसके जरिये अतीत में जा सकते हैं.. यह बड़ी रोमांचक कल्पना है जो कभी न कभी हर किसी ने की होगी। अब अगर टेक्निकली इस संभावना की बात करें तो यह पाॅसिबल नहीं लगता। समय एक लीनियर यूनिट है, इसे रिवर्स नहीं किया जा सकता। मतलब अतीत को आप देख तो सकते हैं किसी तरह लेकिन जो घट चुका है, उसे बदल नहीं सकते।

    देख कैसे सकते हैं… इस बात का जवाब यह है कि कभी स्पेस में रोशनी से तेज गति से दूरी तय करने का कोई जुगाड़ बना सके तो जरूर देख सकते हैं। साईंस में दिलचस्पी रखने वाले सभी लोगों ने यह लाईनें जरूर सुनी होंगी कि जैसे-जैसे हम रोशनी की गति के नजदीक पहुंचते जायेंगे, समय हमारे लिये धीमा होता जायेगा—

    और बराबर पहुंचने पर थम जायेगा, जबकि उस स्पीड का बार्डर क्रास करते ही वह हमारे लिये उल्टा चलने लगेगा… यानि तब चीजें वर्तमान से पीछे की तरफ जाते देख पायेंगे। अब सामान्यतः यह बात आदमी के सर के ऊपर से गुजर जाती है और वह खिल्ली उड़ा के आगे बढ़ लेता है।

    लेकिन कोशिश करे तो समझ भी सकता है.. आइये इसे समझने का एक बिलकुल आसान सा रास्ता बताता हूँ। समझिये कि हम कोई भी चीज प्रकाश के माध्यम से देख सकते हैं और यह हमारी एक लिमिटेशन है। प्रकाश की गति की अपनी एक लिमिटेशन है..

    लगभग तीन लाख किलोमीटर पर सेकेंड। तो आप आंख खोल कर जो भी चीज देखते हैं, वह प्रकाश की गति के नियम से बंधी होती है और हकीकत में आप एग्जेक्ट वर्तमान में कुछ भी नहीं देख पाते। जो भी देखते हैं वह कुछ न कुछ पुराना ही होता है।

    अब कम दूरी पर यह प्रभाव पता नहीं चलता लेकिन जैसे-जैसे दूरी बढ़ती जायेगी, यह अंतर बढ़ता जायेगा। पृथ्वी पर इस फर्क को नहीं महसूस कर सकते लेकिन आसमान की तरफ नजर उठाते ही यह बहुत बड़े अंतर के साथ सामने आता है।

    अपने सोलर सिस्टम के सूरज, ग्रह या चांद तो फिर कुछ मिनट पुराने दिखते हैं लेकिन बाकी तारे, गैलेक्सीज हजार, लाख, करोड़ साल तक पुराने हो सकते हैं, यानि जितना भी वक्त उससे निकली रोशनी को आप तक आने में लगा हो।

    यानि किसी ऐसे तारे को आप देख रहे हैं जो यहां से दस लाख प्रकाशवर्ष दूर है तो मतलब आप उस तारे का वह नजारा देख रहे हैं जो दस लाख साल पहले रहा होगा। हो सकता है कि जब यह व्यू पैदा हुआ था, उसके अगले ही दिन वह तारा खत्म हो चुका हो लेकिन आपको वह लाखों साल यूं ही दिखता रहेगा।

    तो ठीक इसी तरह मान लीजिये कि आपके पास एक इतना हाईटेक टेलिस्कोप है कि आप एक हजार प्रकाशवर्ष दूर से भी पृथ्वी को देख सकते हैं तो उसके साथ पृथ्वी से इस दूरी पर जाइये। अब अगर आप प्रकाश की गति से जायेंगे तो आपको हजार साल लग जायेंगे और तब आपको अभी का नजारा दिखेगा—

    यानि यहाँ पे वक्त आपके लिये थमा हुआ है कि जहां से चले थे, वहीं हैं जबकि पृथ्वी पर तो इस बीच हजार साल गुजर चुके होंगे और हो सकता है कि आपके टेकऑफ करने के अगले ही दिन पृथ्वी किसी बुरे इत्तेफाक का शिकार हो कर खत्म हो चुकी हो, लेकिन आपको तो वह दिखती रहेगी।

    अब मान लेते हैं कि आपके पास कोई ऐसी टेक्निक है कि प्रकाश की गति आपके लिये मायने नहीं रखती, बल्कि आप पलक झपकते, या एकाध दिन में उसी दूरी पर पहुंच जाते हैं.. तो तकनीकी रूप से आपने रोशनी की गति के बैरियर को तोड़ दिया, और आपको वक्त उल्टा दिखना चाहिये।

    तो हजरत, अब जब उसी प्वाइंट से आप पृथ्वी को देखेंगे तो वह आज वाली पृथ्वी नहीं बल्कि हजार साल पहले की वह पृथ्वी दिखेगी जो अतीत में गुजर चुकी। आपके पास हजार साल पहले बनी पृथ्वी की छवि प्रकाश के माध्यम से हजार साल की यात्रा करके अब पहुंची है।

    इसी तरह स्पीड बैरियर को जितना भी तोड़ते आगे जायेंगे, उतनी ही पुरानी पड़ती पृथ्वी के दर्शन करते जायेंगे। यह है एक्चुअली वह कांसेप्ट जहां कहा जाता है कि अगर आप रोशनी से तेज गति से चल लिये तो वक्त आपके लिये उल्टा चलने लगेगा।

    तो अब आते हैं मेन मुद्दे पर जो टाईम मशीन को ले कर है.. ऐसी कोई तकनीक तो विकसित की जा सकती है कि उसके जरिये हम अतीत में देख सकें लेकिन उसे बस इसी तरह देख सकते हैं जैसे सिनेमाहाल में बैठा दर्शक पर्दे पर फिल्म देखता है।

    हां, इससे हो चुकी घटनाओं को समझने में मदद मिल सकती है, रहस्यों की गुत्थी सुलझ सकती है लेकिन देखने वाला उसमें असरअंदाज नहीं हो सकता। वह उस गुजर चुके अतीत में कोई भी फिजिकल एंटरफियरेंस नहीं कर सकता।

    बाकी भविष्य में जाने जैसा कुछ भी पाॅसिबल नहीं.. उसके अंदाजे लगा कर सिमुलेशन क्रियेट किया जा सकता है लेकिन चूंकि वह अनिश्चित है, अलिखित है (धार्मिक गपों से परे) तो उसकी कोई झलक भी मुमकिन नही।

    Written By Ashfaq Ahmad

  • अमरत्व

    अमरत्व

    कैसा हो कि हम अगर तकनीकी रूप से अमर हो जायें?

    अबूझ को बूझने की प्रक्रिया में, संगठित होते समाजों की बैक बोन, धर्म के रूप में स्थापित हुई थी, उन्होंने कुदरती घटनाओं के पीछे ईश्वर के अस्तित्व की अवधारणा दी, शरीर को चलायमान रखने वाले कारक के रूप में आत्मा का कांसेप्ट खड़ा किया और इसे लेकर तरह-तरह के लुभावने-डरावने मिथक और कहानियां खड़ी की— लेकिन क्या वाक़ई आत्मा जैसा कुछ होता है?

    अगर आपका जवाब हां में है तो खुद से पूछिये कि आपके शरीर में कितनी आत्माएं रहती हैं? आत्मा को मान्यता देंगे तो फिर आपको यह भी मानना पड़ेगा कि आपके शरीर में कोई एक आत्मा नहीं है, बल्कि हर अंग की अपनी आत्मा है और एक शरीर करोड़ों आत्माओं का घर होता है।थोड़ा दिमाग लगा कर सोचिये न, कि आत्मा मतलब आप न? शरीर में क्या है जो बदल नहीं सकता— ब्लड की कमी हो जाये तो दूसरे का ब्लड ले लेते, किडनी खराब हो जायें, दूसरे की ले लेते, लीवर खराब हो जाये तो दूसरे का ले लेते, हार्ट खराब हो जाये तो दूसरे का ले लेते, ब्रेन बचा है, वह भी आगे ट्रांसप्लांट होने लगेगा.. ऐसे में आत्मा कहाँ है, हर अंग तो अपने मूल शरीर से अलग हो कर दूसरे शरीर में काम कर रहा है।

    हर सेल के पास तो अपनी सेपरेट आत्मा है। इत्तेफाक ऐसा भी हो सकता है कि आपके पैदाईश के वक्त मिले सारे मुख्य अंग बदल गये लेकिन आप अब भी वहीं हैं— तो असल आत्मा कहाँ है? ऐसी उलझन पर आपका जवाब दिमाग पर थमेगा कि असल में आत्मा दिमाग में है— क्योंकि अगर आप अशफाक हैं तो भले एक-एक करके आपके सारे अंग बदल जायें, आप अशफाक ही रहेंगे लेकिन जैसे ही दिमाग बदलेगा— आप अशफाक नहीं रहेंगे।

    तब जिंदा रहा तो जिस शरीर में आपका दिमाग जायेगा, अशफाक अपने आपको वहीं महसूस करेंगे और अगर डेड हो गया तो उस शरीर में जिस किसी का दिमाग डाला जायेगा, अशफाक के शरीर में वही शख्स होगा, अशफाक नहीं— भले अशफाक के सारे बाकी अंग वही क्यों न हों, जो पैदाईश के वक्त से हैं। एक दिमाग बदलते ही पूरा इंसान बदल जायेगा— क्यों? क्योंकि दिमाग ही वह सेंटर प्वाईंट है, जहां चेतना होती है और चेतना क्या है?

    आत्मबोध, यानि खुद के होने का अहसास.. तो क्या इस दिमाग़ को ही आत्मा कहा जा सकता है? ज़ाहिर है कि नहीं— क्योंकि अपने आप में दिमाग खाली डिब्बा है, असल वैल्यू इसमें भरी इनफार्मेशन की है। वह इनफार्मेशन जो जीरो से, उस वक्त से शुरु होती है जब हम होश संभालते हैं। इस इनफार्मेशन के बगैर आप कुछ नहीं— जो भी है यही है, आत्मा, कांशसनेस, आत्मबोध।

    भले अभी पॉसिबल न हो— पर मेरी ही एक कहानी मिरोव में (जिसका जिक्र पिछली पोस्ट में भी था) एक बायोइंजीनियरिंग कंपनी है, दो हजार बत्तीस की टाईमलाईन के हिसाब से वह थ्रीडी प्रिंटर टाईप टेक्नीक (भविष्य में यह भी आम होनी तय है) से एडवांस ह्यूमन बाॅडी बनाना शुरु करती है। मतलब आदमी मरता क्यों है.. इसका सिंपल जवाब कोशिका विभाजन में है, जिसकी एक हेफ्लिक लिमिट होती है, जिसे क्रास करते ही शरीर बूढ़ा, जर्जर और मृत हो जाता है।

    अगर किसी टेक्नीक से इस विभाजन की लिमिट बढ़ा दी जाये, या असीमित कर दी जाये तो शरीर ज्यादा लंबा भी चल सकता है। इसी थ्योरी पर वह ज्यादा बेहतर कैटिगरी के इंसान लैब में बनाती है जिसे मिरोव कहा जाता है। वह ऐसे शरीर तो बना लेती है लेकिन किडनी, लीवर, हार्ट, ब्रेन जैसे अंग उतने कारगर नहीं बना पाती तो न्यूयार्क जैसे शहर में ऑपरेट करने के कारण लावारिस लाशों से यह अंग लेकर मिरोव में ट्रांसप्लांट कर देती है। फिर वह कोई रेडीमेड मेमोरी या किसी जिंदा इंसान की मेमोरी एक्सट्रेक्ट करके उसमें इम्प्लांट कर देती है और वह मिरोव फिर खुद को वही इंसान समझने लगता है।

    वह दो तरह के मिरोव बनाती है, एक जो किसी के क्लोन होते हैं और जिनका परपज मेन मालिक के डैमेज अंग का रिप्लेसमेंट होता है, तो दूसरा यूनीक आईडी होता है, यानि जो किसी की काॅपी न हो। अब उन यूनीक मिरोव के कई तरह के प्रयोग वे मेमोरी इम्प्लांटेशन के जरिये करते हैं। सपोज एक एक्सपेरिमेंट के तहत वे हिमालयन रीजन से चार सौ साल पुरानी मगर सुरक्षित लाश की मेमोरी एक्सट्रेक्ट करके एक मिरोव में डालते हैं जो वर्क कर जाती है और उसके जरिये चार सौ साल पहले की एक सनसनीखेज दास्तान का रहस्य खुलता है।

    यहाँ कहानी से हट के दो प्वाइंट समझिये— कि उस कंपनी की सर्विस अफोर्ड करने लायक लोग मिरोव प्रोग्राम का दो तरह से यूज़ कर सकते हैं। अपना युवावस्था का क्लोन बनवा के अपनी मेमोरी उसमें इम्प्लांट करवा के उस नये जीवन को उसी आत्मबोध के साथ जी सकते हैं, एक बेहतर और ज्यादा चलने वाले शरीर में—

    जहां वक्त के साथ रिटायर होता हर अंग बदलता चला जायेगा, यहाँ तक कि दिमाग भी और वह मेमोरी आगे बढ़ते हुए उसी आत्मबोध, चेतना और इतिहास को कैरी करते रहेगी। पीछे जो अंग बेकार हुए, नष्ट कर दिये गये। जो ब्रेन निकाला गया, इनफार्मेशन निकाल के उसे नष्ट कर दिया। सारी वैल्यू उस इन्फार्मेशन की ही है, दिमाग़ की कोई वैल्यू नहीं।

    इस सर्विस को अफोर्ड करने लायक बंदे के पास दूसरा ऑप्शन यह भी है वह अपनी शक्ल और बाॅडी से संतुष्ट न हो तो यूनीक आईडी वाला मिरोव बनवा ले और फिर आगे का जीवन उस शरीर में जिये… या चाहे तो जब इस शरीर में बूढ़ा हो जाये तो कोई दूसरा युवा शरीर (बिकने के लिये गरीब और ज़रूरतमंद हर जगह मिल जायेंगे) खरीद ले और उसकी मेमोरी डिलीट करवा के अपनी मेमोरी उसमें इम्प्लांट करवा ले और पीछे अपने बेकार शरीर को नष्ट करवा दे।

    जिस्म देने वाले युवा का तो कुछ जाना नहीं, गरीबी से निकल कर अमीरी में पहुंच जायेगा। जायेगा क्या— सिर्फ उसके दिमाग में भरी वह इन्फार्मेशन, जो बचपन से तब तक बनी उसकी मेमोरी थी। यही मेमोरी भर वह था, उसकी चेतना थी, उसका आत्मबोध था.. ध्यान दीजिये कि टेक्निकली उसे मारा नहीं जायेगा, बल्कि वह शरीर पहले की तरह ही जिंदा रहेगा लेकिन हकीकत में वह मर चुकेगा और उसकी जगह उसके शरीर में कोई सक्षम अमीर जी रहा होगा, जो ऐसे ही हर बीस पच्चीस साल में शरीर बदलते हमेशा जिंदा रहेगा।

    दोनों ही कंडीशन में सक्षम लोगों के पास अमर जीवन होगा— मौत जैसी कोई कंडीशन ही नहीं। मजे की बात यह है कि सेम मेमोरी अगर दस अलग-अलग लोगों में प्लांट कर दी जाये तो उनमें से हर कोई खुद को वही ओरिजनल शख़्सियत समझेगा, जैसे मेरी “मिरोव” में दो अलग लोग सेम टाईम में एक ही कैरेक्टर को जी रहे होते हैं और इतना ही नहीं, यह मेमोरी इम्प्लांटेशन इंसान का जेंडर भी चेंज कर सकता है जैसे इसी कहानी में एक लड़की, ख़ुद को मर्द के शरीर में जी रही होती है तो वहीं एक मर्द ख़ुद को एक नारी शरीर में जी रहा होता है। इस तरह के कई खेल इस इम्प्लांटेशन के ज़रिये खेले जा सकते हैं— जिनमें चार-पांच तरह के उदाहरण मैंने कहानी में ही दिये हैं।

    इसी सिलसिले को वेबसीरीज “अपलोड” में वन स्टेप अहेड दिखाया गया है कि कुछ कंपनीज अपने वर्चुअल वर्ल्ड (स्वर्ग टाईप) खड़े कर देती हैं जहां कस्टमर जब रियल वर्ल्ड में अपनी लाईफ जी चुके (किसी भी एज में), तो वह या उसके परिजन उसके लिये ऑफ्टरलाईफ खरीद सकते हैं। यानि उस वयक्ति की मेमोरी एक्सट्रैक्ट करके, अपने बनाये स्वर्ग सरीखे वर्चुअल वर्ल्ड में उसके लिये बने अवतार में ट्रांसफर कर दी जाती हैं जहां जब तक पीछे से रीचार्ज होता रहेगा।

    वह अपने वर्चुअल अवतार के रूप में हमेशा आगे की जिंदगी का लुत्फ उठाता रहेगा। वहां हर तरह की लग्जरियस सर्विसेज हैं, जिनके अलग से बिल पे करने होते हैं। वह वहीं से सीधे रियल वर्ल्ड में अपने अजीजों से कम्यूनिकेशन कर सकता है और उन्हें बिल पे करने के लिये मना सकता है। मरने के बाद भी उस अवतार के जरिये मानसिक तसल्ली के लिये (अपनी या पीछे छूटे पर्सन की) उनसे बतिया सकता है। उनसे फेस टु फेस बात कर सकता है, पार्टनर से सेक्स कर सकता है, झगड़ा भी करना चाहे तो वह भी कर सकते हैं।

    सोचिये कैसा लगेगा कि आप अपने मरे हुए परिजन से उसके मरने के बाद भी वहां से बात कर सकते हैं, जहां वह स्वर्ग के कांसेप्ट पर जीवन के मजे ले रहा है, बशर्ते पीछे से आप पेमेंट करते रहें। पेमेंट, प्रीपेड रीचार्ज जैसी होती है, जब नहीं होती तो आपके अवतार को इकानामी क्लास में पहुंचा दिया जाता है जहां आपको कंपनी की तरफ से कुछ काईन्स मिलते हैं, जिनके इस्तेमाल से आप एक जगह बैठे सांस लेते और सोचते महीना गुजार सकते हैं।

    या फिर बोल बतिया कर, रियल वर्ल्ड के किसी पर्सन से बतिया कर कुछ सेकेंड्स/मिनट्स में खर्च करके बाकी महीने के लिये फ्रीज हो सकते हैं.. यह फर्क समर्थ और असमर्थ के अंतर को बनाये रखने और लोगों को ज्यादा खर्चने को प्रेरित करने के लिये बनाया गया है। अब यह आपकी हैसियत पर डिपेंड करेगा कि आप उस स्वर्ग में मरने के बाद की जिंदगी को कैसे और कितना एंजाय कर सकते हैं।

    अब हो सकता है कि यह सुनने में आपको अटपटा लगे, हंसी आये, नामुमकिन लगे लेकिन सच यह है कि यह सब हंड्रेड पर्सेंट मुमकिन है और इस पर काम चल रहा है। सौ-पचास साल के अंदर ही आप यह मेमोरी इम्प्लांटेशन का खेल होते देखेंगे। जिस दिन यह हुआ, इंसान अमरता को छू लेगा। बाकी आप इस पूरे खेल में उस आत्मा को ढूंढिये, जिसे लेकर लंबी-लंबी फंतासी आपको धर्मग्रंथों ने समझाई है। उसकी हैसियत क्या है, उसकी वैल्यू क्या है— आपके शरीर में लगभग सबकुछ रिप्लेसेबल है.. तो ऐसे में किसी आत्मा के लिये शरीर का वह कौन सा कोना बचता है जहां वह अपने मूल शरीर के साथ स्टिक रह सकती है।

    नोट: स्पेसिफिक मेमोरी डिलीट करने, एक्सट्रैक्ट करके किसी और को देने, फेक मेमोरी बनाने या मेमोरी इम्प्लांटेशन से सम्बंधित जेसन बोर्न सीरीज, एटर्नल सनशाईन ऑफ द स्पाॅटलेस माइंड, ब्लेड रनर और टोटल रिकाॅल जैसी फिल्में हालिवुड ने ऑलरेडी बना रखी हैं, अगर ज्यादा बेहतर ढंग से इन संभावनाओं को परखना चाहते हैं तो इन फिल्मों को देख सकते हैं।

    Written By Ashfaq Ahmad

    • कास्मोलाॅजी 2

      कास्मोलाॅजी 2

      अपने से अलग आयाम की चीज़ों को हम क्यों नहीं समझ सकते?

      पिछली पोस्ट में मैंने एक प्वाईंट लिखा था कि आदमी अपने देखे, सुने, जाने हुए यानि ज्ञात से बाहर की कल्पना भी नहीं कर सकता और यही वजह है कि ईश्वर हो या एलियन, इन्हें समझने के लिये इंसान अपनी इन्हीं कल्पनाओं को अप्लाई करता है और ईश्वर या एलियन, इंसान के ही प्रतिरूप नज़र आते हैं। यह एक तरह से सभी इंसानों पर लागू होता है लेकिन कुछ लोग इस बाउंड्री को तोड़ने में सक्षम भी होते हैं..

      वे बहुत सी ऐसी चीज़ों की कल्पना कर सकते हैं जो सामान्य इंसान की क्षमता से परे हो। इस चीज को आप कुछ डिस्कवरी के प्रोग्राम्स या उन हालिवुड मूवीज से समझ सकते हैं जहां इस जानी पहचानी दुनिया से बाहर की चीजों या जीवन की कल्पना की गई है… मसलन स्टार वार्स सीरीज की फिल्में ले लीजिये या अवतार ले लीजिये।

      इनकी कामयाबी का एक बड़ा कारण यही था कि यहां लेखक, निर्देशक ने किसी ईश्वर की तरह वे चीजें गढ़ी थीं, जो अस्तित्व नहीं रखतीं। हमने ऐसा कुछ पहली बार देखा, जाना और जिसने हमें रोमांचित किया। हां, आप कह सकते हैं कि भले उनमें तमाम चीजें हमारी जानी पहचानी दुनिया से एकदम अलग थीं…

      लेकिन नियम उन पर भी वही अप्लाई किये गये जो हमारे लगभग जाने पहचाने ही हैं। मसलन अवतार का पेंडोरावासी हमसे बिलकुल अलग है लेकिन वह है हमारा ही प्रतिरूप— यानि दो-दो हाथ-पैर, कान आंख और मुंह वाला। ऐसा इसलिये भी था ताकि लोग उनसे कनेक्ट कर पायें, वर्ना एलियंस तो उन्होंने हर तरह के दिखा रखे हैं।

      मैंने एक कहानी लिखी थी, मिरोव… जिसका बेसिक प्लाट इस यूनिवर्स के उस दूसरे हिस्से और उसमें मौजूद जीवन से सम्बंधित है जिसे हम डार्क मैटर वाला शैडो यूनिवर्स कहते हैं। किसी क्रियेटर की तरह ही मैंने भी यहां ज्ञात की बाउंड्री से बाहर जा कर उस पूरे ब्रह्मांड की कल्पना की थी, जो कहीं है ही नहीं, या है तो हमसे अछूता ही है।

      अब यहां से थोड़ा ध्यान दे कर समझिये— हम जो कुछ भी इस विशाल-विकराल ब्रह्मांड में किसी भी सेंस या तकनीक से डिटेक्ट कर सकते हैं, उसे विजिबल मैटर कहते हैं और हैरानी की बात यह है कि यह बस चार पांच प्रतिशत ही है। बाकी क्या है, न हमें पता है और न हम उसे डिटेक्ट कर सकते हैं लेकिन पहचान के लिये हमने उसे एक नाम दे रखा है डार्क मैटर और डार्क एनर्जी।

      कैसा हो कि असल ब्रह्मांड वही हो जिसमें हमारा ब्रह्मांड बस एक एनाॅमली भर हो। दोनों एक साथ एग्जिस्ट कर रहे हैं लेकिन एक दूसरे के लिये डिटेक्टेबल नहीं। और ऐसा भी जरूरी नहीं कि यह बस दो ही ब्रह्माण्ड हों, बल्कि एक के अंदर एक करके भी कई ब्रह्मांड हो सकते हैं जो एक दूसरे के लिये डिटेक्टेबल ही न हों।

      क्यों? क्योंकि हर ब्रह्मांड की बनावट अलग होगी, उसका विजिबल मैटर बिलकुल अलग संरचना रखता होगा। हम जिस ब्रह्मांड से सम्बन्ध रखते हैं, उसी से कनेक्ट होते हैं— बाकी हमारे लिये कोई वजूद नहीं रखते। यह अलग-अलग ब्रह्मांड बनते और नष्ट भी होते रहते हो सकते हैं, जैसे हमारा अपना ब्रह्माण्ड एक दिन शुरू हुआ था और एक दिन खत्म भी हो जायेगा।

      अब उस दूसरे या कहें कि मुख्य ब्रह्मांड में भी अलग-अलग तरह से जीवन हो सकता है.. उसकी बनावट हमारे देखे जाने ब्रह्मांड से बिलकुल अलग हो सकती है। मैंने मिरोव में उसी अलग तरह के, हमारी ज्ञात कल्पनाओं से बाहर निकल कर एक कल्पना की है और वहां के अलग-अलग न सिर्फ जीवन बल्कि तमाम तरह की चीजों की कल्पना की है।

      अब यहां यह समझने वाली बात है कि उनसे जब हमारे इस ब्रह्मांड के लोगों का सम्पर्क होता है.. (बेशक किसी तकनीक के सहारे) तो वहां उन्हें ज्यादातर चीजें अपने हिसाब से या तो सिरे से समझ में ही नहीं आतीं या उनकी ज्ञात कल्पनाओं पर ही खरी उतरती हैं— जबकि वह सच नहीं होता।

      कहानी में ही जब वह कुछ जानी पहचानी चीजों को समझने में धोखा खाते हैं तो उन्हें समझाया जाता है कि उनके दिमाग इस लिमिटेशन से बंधे हैं कि वे बस उन चीजों को ही समझ सकते हैं, जिन्हें उन्होंने पहले देखा या जाना है— जबकि वहां हर चीज उनके अपने ब्रह्मांड से अलग है, तो होता यह है कि जो भी चीज उनका दिमाग समझ नहीं पाता—
      वहां वह अपनी जानी पहचानी कोई चीज फिट करके तस्वीर को मुकम्मल कर लेता है और उन्हें लगता है कि वे सामने मौजूद चीज को एकदम सही रूप में देख पा रहे हैं, जबकि हकीकत में कहीं वे सामने मौजूद चीज को उसके हकीकी रूप में या बस आधा अधूरा देख पा रहे होते हैं, या सिरे से गलत देख पा रहे होते हैं, जो उनका दिमाग उन्हें दिखा रहा होता है।

      तो अज्ञात को देखने समझने में यह भी एक बड़ी मुश्किल है कि मान लीजिये हम एक बीस फुट के जीव को देख रहे हैं जो छिपकली के जैसा दिख रहा है, लेकिन हकीकत में वह कोई ऐसा जीव है, जो हमारे ज्ञान से परे है, दिमाग उसे समझने में असमर्थ है— तो ऐसा तो नहीं है कि आपका दिमाग, आँखों द्वारा देखी छवि को डिकोड ही नहीं करेगा और आप कुछ देख नहीं पायेंगे, बल्कि आपका दिमाग उसे उस देखी भाली इमेज में ढाल देगा, जिससे वह सबसे ज्यादा मिलती जुलती लगेगी।

      अब आपको जो दिख रहा है, वह बस आपके दिमाग की अपनी बनाई एक इमेज भर है, हकीकत में वह बिलकुल वैसी नहीं है। ज्ञात की कल्पनाओं से इतर हम जब भी कोई चीज या जीव देखेंगे, वहां हमारा दिमाग ठीक वैसा ही धोखा देगा, जैसा अत्याधिक नशे में रस्सी के सांप दिखने में होता है।

      हमारा दिमाग अपनी क्षमता भर ही काम कर सकता है.. और आंखों देखे सभी ऑब्जेक्ट्स को उसकी एक्चुअल इमेज में देख पाना इसके लिये बस तभी तक संभव हो, जब तक वह चीज ज्ञात की बाउंड्री के अंदर की हो। बाकी दूसरी अहम चीज यह भी है कि हम एक ऐसे मैट्रिक्स में फंसे जीव हैं, जहां यूनिवर्स रूपी कई जाल एक दूसरे से हैं तो उलझे—

      लेकिन वे चूंकि अलग-अलग मटेरियल से बने हुए हैं, और हम पर सिर्फ अपने मटेरियल के जाल को देख पाने की बंदिश लागू है तो हमारे लिये बस एक जाल ही विजिबल है और हम उसे ही अकेला जाल समझ रहे हैं। तीसरी अहम बात कि कोई भी जाल स्थाई नहीं है— सभी आदि और अंत की शर्त से बंधे बन भी रहे हैं और खत्म भी हो रहे हैं। हालांकि यह थ्योरी भर है लेकिन ऐसी संभावना तो है ही।

      (समाप्त)

      Written By Ashfaq Ahmad

    • कास्मोलाॅजी

      कास्मोलाॅजी

      दूसरे ग्रहों पर हमसे भिन्न किस तरह का जीवन हो सकता है?

      काॅस्मोलाॅजी से सम्बंधित बातें लिखने में जो एक सबसे बड़ी परेशानी होती है, वह यह कि इस बारे में ज्यादातर लोगों की समझ बहुत कम होती है और यह विषय इतना जटिल है कि सीधे-सीधे तो चीज़ें समझाई भी नहीं जा सकतीं। अब मसलन इस सवाल को ही ले लीजिये कि क्या पृथ्वी के सिवा भी किसी अन्य ग्रह पर जीवन हो सकता है?

      आदमी जब यह सवाल पूछता है तो उसके मन में जीवन की कल्पना ठीक वैसी ही होती है, जैसा जीवन हम पृथ्वी पर देखते हैं… चाहे वह जीव-जंतुओं, पशु पक्षियों के रूप में हो, या इंसानों के रूप में। यह हमारी लिमिटेशन है कि हम देखे, सुने, जाने हुए से बाहर की कल्पना भी नहीं कर पाते, तो हमारे सवाल उन कल्पनाओं से ही जुड़े होते हैं जो हमारे लिये जानी पहचानी ही होती हैं।

      मसलन हम किन्हीं दूसरे ग्रह से आये एलियन्स की कल्पना करते हैं तो उन्हें अपनी पृथ्वी से सम्बंधित जीवों के ही अंग दे डालते हैं, चाहे वे किसी एक जानवर से सम्बंधित हों या कई जीवों का मिश्रण। इससे बाहर की चीज़ें हमारी समझ से परे हैं। यह कुछ ऐसा है कि भयानक किस्म की विविधताओं से भरे यूनिवर्स के रचियता के रूप में हम जिन ईश्वरों की कल्पना करते हैं, तो जहां वह साकार रूप में है—

      वहां उसके इंसानी रंग रूप में या कई जीवों के मिक्सचर के रूप में इमैजिन करते हैं और जहां निराकार है, वहां भी उसे डिस्क्राईब करने के लिये भी इंसानी बातों का ही सहारा लेते हैं… यहां तक कि इंसान की सारी अनुभूतियां हम उस पर अप्लाई कर देते हैं और वह किसी साधारण मनुष्य की तरह खुश भी होता है, खफा भी होता है, चापलूसी भी पसंद करता है और इंसानों जैसे ही फैसले भी करता है।

      एक सेकेंड के लिये सोचिये कि वाकई कोई रचियता है, तो उसका दिमाग़ और उसकी काबिलियत क्या होगी— क्या मामूली ब्रेन कैपेसिटी लेकर आप उसकी सोच के अरीब-करीब भी पहुंच पायेंगे? लेकिन यहां तो एक मामूली अनपढ़ और नर्सरी के आईक्यू लेवल वाला धार्मिक बंदा भी उसे अच्छी तरह समझ लेने का दावा करता है…

      सच यह है कि पृथ्वी पर जितने भी ईश्वर पाये जाते हैं, वह इंसानों के अपनी जानी पहचानी कल्पना के हिसाब से खुद उसके बनाये हैं। हकीकत में ऐसा कोई रचियता है या नहीं— मुझे नहीं पता, न पता कर पाने की औकात है मेरी और न ही पता करने में कोई दिलचस्पी। यहां इस बात का अर्थ इतना भर है कि इंसान अपनी जानी पहचानी कल्पनाओं की बाउंड्री ईश्वर तक के मामले में क्रास नहीं कर पाता और यही नियम वह एलियंस पर अप्लाई करता है।

      जबकि हमारी जानी पहचानी कल्पनाओं से बाहर जीवन जाने कितने तरह का हो सकता है। जीवन मतलब लिविंग थिंग, बायोलाॅजिकल केमिस्ट्री, एक्टिव ऑर्गेनिजम.. वह एक बैक्टीरिया है तो वह भी जीवन के दायरे में आयेगा। इसके अलग-अलग तमाम ऐसे रूप हो सकते हैं जो हमारे सेंसेज से परे हों। या हम देखें तो देख कर भी न समझ पायें।

      वह सिंगल सेल ऑर्गेनिजम भी हो सकता है और हमारी तरह कोई कांपलेक्स ऑर्गेनिजम भी— जिसका ज़ाहिरी रूप हमसे बिलकुल अलग हो। उदाहरणार्थ, “डारकेस्ट ऑवर” नाम की हालिवुड मूवी में एक ऐसे एलियन की कल्पना की गई थी जो इंसानी सेंसेज से परे था और एक तरह की एनर्जी भर था। तो इसी तरह के जीवन भी हो सकते हैं।

      जीवन का मतलब इंसान जैसा सुप्रीम क्रीचर ही नहीं होता.. जैसे पृथ्वी पर होता है कि हर तरह की एक्सट्रीम कंडीशन मेें भी किसी न किसी तरह का जीवन पनप जाता है— इसी तर्ज पर हर ग्रह पर उसकी कंडीशन के हिसाब से किसी न किसी तरह का जीवन इवाॅल्व हो सकता है।

      जैसे हमारे पड़ोसी शुक्र ग्रह की कंडीशंस इतनी बदतर हैं कि हमारे हिसाब से वहां किसी भी तरह का जीवन पनप नहीं सकता लेकिन वहीं यह संभावना भी है कि किसी रूप में उसी माहौल में सर्वाईव करने लायक कोई सिंगल सेल ऑर्गेनिजम ही पनप जाये। टेक्निकली वह भी जीवन है, भले हमारे लिये उसके कोई मायने न हों।

      हमारे सौर परिवार के सबसे सुदूर प्लेनेट प्लेटों पर जाहिरी तौर पर जीवन की कोई गुंजाइश नहीं दिखती, क्योंकि वह सूरज से इतनी दूर है कि वहां तक रोशनी भी ठीक से नहीं पहुंचती। हमारे जाने पहचाने जीवन के (जिसकी भी हम कल्पना करते हैं) वहां पनपने की दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं है—

      लेकिन फिर भी उसके अंदरूनी गर्म हिस्सों में या उसके उपग्रहों के अंदरूनी हिस्सों में कोई बैक्टीरियल लाईफ मौजूद हो सकती है— यहां तक कि उस प्लेनेट नाईन या एक्स का चक्कर काटते उसके उपग्रहों के अंदरूनी हिस्सों में भी, जो गर्म हो सकते हैं… जिस प्लेनेट को लेकर अब तक कोई पुख्ता सबूत भी हाथ नहीं लगा।

      तो जीवन होने को सभी ग्रहों पर किसी न किसी रूप में हो सकता है, बस वह हमारी परिभाषा में फिट नहीं बैठता। यह जीवन हमारे हिसाब से एकदम शुरुआती लेवल वाला सिंगल सेल ऑर्गेनिजम हो सकता है जिसे एक कांपलेक्स ऑर्गेनिजम तक पहुंचने के लिये बड़ा लंबा, पेचीदा और नाजुक सफर तय करना होता है।

      हम आज जहां दिखते हैं, वहां तक हमारे पहुंचने में जहां सबसे बड़ा हाथ हमारे ग्रह की सूटेबल पोजीशन है, वहीं तमाम तरह के ऐसे इत्तेफाक भी रहे हैं, जिनमें से एक भी न घटता तो हम न होते। यह करोड़ों मौकों से एक मौके मौके पर बनने वाले इत्तेफाक हैं, लेकिन यूनिवर्स में सोलर सिस्टम भी तो अरबों हैं। तो ऐसे में जहां भी यह स्थितियां बनी होंगी, यह इत्तेफाक घटे होंगे—

      वहां हमारे जैसा कांपलेक्स ऑर्गेनिजम वाला जीवन जरूर होगा.. वर्ना सिंगल सेल वाला तो कहीं भी हो सकता है— एक्सट्रीम कंडीशंस वाले ग्रहों पर भी। हां, यह जरूर है कि कहीं हमारी जानी पहचानी कल्पनाओं वाला भी हो सकता है तो कहीं वह भी, जो हम न देख सकें और न ही समझ सकें।

      क्रमशः

      Written By Ashfaq Ahmad

    बिखरे हुए शब्दों का समंदर