Category Archives: Paperback

सर्वाइवर्स ऑफ़ द अर्थ

  • ₹200.00
  • by Ashfaq Ahmad (Author)
  • Book: Survivors of the Earth
  • Paperback: 200 pages
  • Publisher: Gradias Publishing House
  • Language: HindiISBN-13:  978-81-948718-5-9
  • Product Dimensions: 13.95 x 1.50 x 21.59 cm

कहानी है उस दौर की जब हम इंसानों ने प्रकृति के साथ खिलवाड़ करते-करते उसे प्रतिक्रिया देने, पलटवार करने पर मजबूर कर दिया था और प्रकृति जब अपनी पर आती है तो इंसान जैसी ताकतवर प्रजाति का भी उसके सामने कुछ भी नहीं। 

कहानी के केंद्र में चार लोग हैं जो दुनिया के चार अलग-अलग हिस्सों में रहते हैं। एक राजस्थान भारत का रहने वाला विनोद है— जो अपने आप से संघर्ष कर रहा है। उसे डिग्री हासिल करने के बाद जिंदगी की हकीकत से सामना करने के बाद अब अफसोस है कि उसने अपनी ऊर्जा अन्न हासिल करने के पीछे क्यों न लगाई, बजाय ज्ञान हासिल करने के… और वह पश्चाताप करने के लिये मां और बहनों के जिस्मों से गुजर कर उसके पेट तक पहुंचते अन्न को त्याग कर चल देता है जिंदगी के संघर्षों का सामना करने। 

दूसरी ऑकलैंड न्यूजीलैण्ड में पैदा होने वाली एमिली है— जिसे न सिर्फ दूसरे कहते हैं बल्कि खुद उसने भी स्वीकार कर रखा है कि वह मन्हूस है। उसकी ईश्वर में कोई आस्था नहीं थी और न ही वह किस्मत को मानती थी लेकिन कभी इस पहेली को सुलझा नहीं पाई थी कि क्यों कोई अदृश्य शक्ति जैसे लगातार उस पर नजर रखती है और उसके बनते काम भी बिगाड़ देती है। वह इतनी मन्हूस थी कि मरने की कोशिशों में भी इस तरह नाकाम हुई थी कि जिंदगी में सजा के तौर पर उसका खामियाजा भुगतना पड़ा था। कभी अमीर कारोबारी रहा पिता उसकी वजह से होने वाले नुकसानों की भरपाई करते-करते कंगाली की कगार पे पहुंच गया था तो उसने एमिली को घर से ही निकाल दिया था और अब वह आस्ट्रेलिया और आसपास के छोटे-छोटे देशों में रोजी रोटी के पीछे भटकती फिर रही थी लेकिन बुरे इत्तेफाक कहीं भी उसका पीछा नहीं छोड़ रहे थे।

तीसरा है माली में रहने वाला सावो— जो कभी नाईजर नदी के किनारे बसे एक खुशहाल कबीले में रहा करता था लेकिन बदलते मौसम ने उसे ऐसे ठिकाने लगाया था कि अब उसके लिये दाने-दाने के पीछे संघर्ष था और जो थोड़ा बहुत उसे मिल भी रहा था, उसकी जड़ में उसकी बहन थी, जिसके लिये उसने मान लिया था कि बहन पेट से बड़ी नहीं हो सकती। वह उस जमीन पर था जहाँ कोई फसल नहीं थी और जो आयतित खाद्यान्न पर निर्भर था लेकिन बदलते मौसम ने पूरी दुनिया में ऐसी तबाही फैला रखी थी कि खाद्यान्न उत्पादक देश भी अब बेबस हो गये थे और नतीजे में वे देश जो आयतित खाद्यान्न पर निर्भर थे, एक-एक दाने के लिये खूनी संघर्ष कर रहे थे। सावो भी बहन और अमेरिकी बेस के सहारे जो कुछ पा रहा था, वह इसी संघर्ष के हत्थे चढ़ जाता है और उसे फिर चल देना पड़ता है किसी नयी जमीन की तरफ।

चौथा कैरेक्टर है इजाबेल— जो कैनेडा की रहने वाली है और जहाँ एक तरफ तीन चौथाई दुनिया संघर्षों में फंसी थी, वहीं वह उन चंद लोगों में थी जिनके लिये इस बर्बादी में भी बेहतरी थी। इजाबेल हद दर्जे की कन्फ्यूज्ड कैरेक्टर है जो लड़कों की जिंदगी भी जीना चाहती है लेकिन अपने स्त्रीत्व से भी मुक्त नहीं होना चाहती और अंततः एक दोहरी जिंदगी जीती है। जहाँ निजी पलों में वह एक लड़की होती है, वहीं बाहरी दुनिया में वह एक लड़का होती है। उसके लिये अगर कोई चीज बुरी थी तो वह था मौसम… कनाडा ऊपरी ग्लोब पर होने की वजह से बेशुमार चक्रवाती तूफानों की चपेट में रहता है और बढ़ता समुद्री जलस्तर जहाँ बाकी दुनिया के तटीय शहरों को निगल रहा था— वहीं उसके शहर को भी उसने आधा कर दिया था और एक चक्रवाती तूफान के साथ जिस दिन पूरी तरह गर्क कर देने पर उतारू था। वह शहर छोड़ कर चल तो देती है लेकिन बदनसीबी ऐसी कि कुछ ऐसे लोगों के चक्कर में फंस जाती है जो मानव अंगों के व्यापारी थे।

चारों अपने-अपने सफर में हैं कि तभी प्रकृति अपना तांडव शुरू करती है और नव निर्माण से पूर्व के विध्वंस का सिलसिला शुरू हो जाता है। वह विध्वंस जो जमीनों को उखाड़ देता है, पहाड़ों को तोड़ देता है और समुद्रों को उबाल देता है। कुदरत हर निर्माण को ध्वस्त कर देती है और पृथ्वी एक प्रलय को आत्मसात कर के जैसे अपनी पिछली केंचुली को उतार कर एक नये रूप का वरण करती है। 

यह चारों किरदार किस तरह मौत से लगातार जूझते और संघर्ष करते इंसानी जींस को इस कयामत से गुजार कर अगले दौर में ले जाते हैं और नयी पीढ़ी की बुनियाद रखते हैं… यह जानने के लिये आपको इस कहानी के साथ जीना पड़ेगा।  

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CRN-45

  • ₹200.00
  • by Ashfaq Ahmad (Author)
  • Book: CRN-45
  • Paperback: 200 pages
  • Publisher: Gradias Publishing House
  • Language: Hindi
  • ISBN-13:  978-81-948718-6-6
  • Product Dimensions: 13.95 x 1.50 x 21.59 cm

जिस हिसाब से दुनिया में बेतहाशा भीड़ बढ़ रही है… कार्बन उत्सर्जन बढ़ रहा है… लोग प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध उपभोग करके उन्हें खत्म कर रहे हैं… और लगातार अपने लिये स्पेस बढ़ाते हुए बाकी सभी क्रीचर्स के लिये जगह और मौके सीमित करते जा रहे हैं, जिनसे हमारा इको सिस्टम प्रभावित हो सकता है… तो  ऐसे में एक दिन कुदरत भी कोई मौका निकाल कर बदला लेने पर उतर आये तो?

अपने देश को देखिये… देश के लोगों को देखिये… क्या इन्हें एक नागरिक के तौर पर अपनी भूमिका की समझ है? क्या एक इंसान के तौर पर अपनी प्राथमिकताओं का पता है इन्हें? आपको व्यवस्था वैसी ही मिलती है जैसे आप होते हैं और अगर आप खुद ही समझदार और जागरूक नहीं हैं— तो यह तय है कि आपको सिस्टम भी वैसा ही लापरवाह मिलेगा।

ऐसी हालत में कोई डेडली वायरस इनवेशन हो तो? फिर वह वायरस नेचुरल हो या बायोवेपन… उससे ज्यादा बड़ा सवाल यह है कि क्या हमारी व्यवस्था उस अटैक को संभाल पायेगी? क्या हमारे द्वारा चुनी गयी सरकारों ने हमें वह सिस्टम दिया है जो किसी मेडिकल इमर्जेंसी को संभाल सके? शायद नहीं… कल्पना कीजिये कि ऐसे ही किसी विश्वव्यापी वायरस संक्रमण के सामने हमारी व्यवस्था कैसी लचर साबित होगी और करोड़ों लोग अकाल मृत्यु को प्राप्त होंगे।

सीआरएन फोर्टी फाईव ऐसे ही एक विश्वव्यापी संक्रमण की कहानी है— जिसका शिकार हो कर दुनिया की तीन चौथाई आबादी खत्म हो गयी थी और गिने-चुने विकसित देशों को छोड़ कर सभी देशों की व्यवस्थायें इस त्रासदी के आगे दम तोड़ गयी थीं और त्रासदी से उबरने के बाद भी सभी सिस्टम कोलैप्स हो जाने की वजह से ऐसी अराजकता फैली थी कि लाखों सर्वाइव करने वाले लोग फिर भी मारे गये थे… और बचे खुचे लोगों में करोड़ों की भीड़ तो वह थी जो इस संक्रमण का शिकार हो कर अपनी मेमोरी पूरी तरह खो चुकी थी और ताजे पैदा हुए बच्चे जैसी हो गयी थी।

यह वह मौका था जिसने उन सभी दबंग, बाहुबली और ताकतवर लोगों के लिये संभावनाओं के द्वार खोल दिये थे जो इस त्रासदी के बाद भी अपनी ताकत सहेजे रखने में कामयाब रहे थे। उन्होंने व्यवस्थाओं को अपने हाथ में लेकर उनकी सूरत बदल दी… देशों के बजाय ढेरों टैरेट्रीज खड़ी हो गयीं और उन्होंने बची खुची आबादियों को नियंत्रित कर लिया।

लेकिन क्या यह व्यवस्थायें भी हमेशा कायम रह सकती थीं… एक न एक दिन तो कहीं न कहीं बगावत का बिगुल फूंका जाना तय था और यह कहानी एक ऐसी ही बगावत की है, जो दुनिया को वापस पहले जैसा बना देने की कूवत तो रखती है… लेकिन सभी पिछली गलतियों से सबक लेकर एकदम नये रूप में… उस रूप में जो प्रकृति के साथ संतुलन बना कर चल सके और बाकी सभी क्रीचर्स के सह-अस्तित्व को पूरा सम्मान देते हुए उन्हें उनके हिस्से का स्पेस और मौके उपलब्ध करा सके और एक नया एडवांस डेमोक्रेटिक सिस्टम स्थापित कर सके।

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द ब्लडी कैसल

  • ₹250.00
  • by Ashfaq Ahmad (Author)
  • Book: The Bloody Castle
  • Paperback: 250 pages
  • Publisher: Gradias Publishing House
  • Language: Hindi
  • ISBN-13:   978-81-948718-1-1
  • Product Dimensions: 13.95 x 1.75 x 21.59 cm

ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिये टेन मिलियन डॉलर की ईनामी रकम वाला एक रियलिटी शो ‘द ब्लडी कैसल’ लांच होता है जो हॉरर थीम पर होता है। यह शो सेशेल्स के एक निजी प्रापर्टी वाले हॉगर्ड आइलैंड पर आयोजित होता है जहां हांटेड प्लेस के तौर पर मशहूर किंग्समैन कैसल में कंटेस्टेंट्स को सात दिन और सात रातें गुजारनी होती है और जो भी कंटेस्टेंट सबसे बेहतर ढंग से सामने आने वाली हर चुनौती से लड़ेगा, उस हिसाब से उसे वोट मिलेंगे… सबसे ज्यादा वोट पाने वाला विनर होगा।

‘द ब्लडी कैसल’ टीम, कैसल या आइलैंड के डरावने माहौल के सिवा भी अपनी तरफ से विज्ञान और तकनीक के इस्तेमाल के साथ उन्हें डराने की हर मुमकिन कोशिश करेगी कि उनकी हिम्मत का सख़्त इम्तिहान लिया जा सके। उनके हर पल को रिकार्ड करने के लिये कैसल समेत न सिर्फ़ पूरे आइलैंड पर बेशुमार कैमरे होंगे, बल्कि ड्रोन कैमरों की मदद भी ली जायेगी और उनकी सांसों पर भी कान बनाये रखने के लिये उनके गलों में एडवांस किस्म के रेडियो कॉलर पहनाये जायेंगे। उन कंटेस्टेंट्स से टीम कोई भी डायरेक्ट संवाद नहीं करेगी, न ही उन्हें किसी तरह की मदद उपलब्ध कराई जायेगी।

कंटेस्टेंट्स को यह सात दिन अपने ढंग से बिताने के लिये पूरी छूट होगी और वे चाहें तो रेप और मर्डर तक कर सकते हैं।शो के पहले सीजन के लिये भारत के अलग-अलग शहरों से आठ लोग चुने जाते हैं जो अलग-अलग फील्ड से थे। दिखने में यही लगता है कि उनका सलेक्शन रैंडमली हुआ है और वे सभी एक दूसरे से एकदम अनकनेक्टेड लोग थे। सारे नियम समझाने के बाद उन्हें आइलैंड पर पहुंचा दिया जाता है और उनका सफ़र शुरू होता है।

उन्हें पहले दिन तो यह एक रियलिटी शो ही लगता है, जहां दिन से लेकर रात तक उन्हें डराने की हल्की-फुल्की कोशिश होती है… लेकिन अगले दिन से ही वे कनफ्यूज होने लगते हैं कि यह वाकई कोई शो था और उन्हें डराने वाली सारी कोशिशें मैनमेड एफर्ट्स थीं।

तीसरे दिन से वे वाक़ई डरना शुरू कर देते हैं और उन्हें अहसास होता है कि दरअसल वहां वाकई पैरानार्मल एक्टिविटीज हो रही थीं और ‘द बल्डी कैसल’ टीम का कैसल की बुरी शक्तियों से एक समझौता हुआ था। शो के नाम पर उनका शिकार बनाया जा रहा था और एंटरटेनमेंट के नाम पर उनकी दुर्दशा को बेचा जा रहा था। उन्हें यह भी अहसास होता है कि वे रैंडमली नहीं चुने गये, बल्कि उन्हें टार्गेट किया गया है और उनसे किसी तरह का बदला लेने के लिये यहां लाया गया है।

वे भले दिखने में एक दूसरे से एकदम असम्बंधित हों, मगर अतीत में उनके बीच कोई ऐसा कॉमन पाप घटित हुआ है जिससे वे सब जुड़े हुए हैं और शो का आर्गेनाइज़र उसी पाप का शिकार हुआ है जो अब इतने यूनीक तरीके से उनसे बदला ले रहा है।तीसरी रात जब एक कंटेस्टेंट की जान चली जाती है, तब उन्हें अपनी बातों पर यक़ीन हो जाता है कि वे सब यहां मरने के लिये छोड़े गये हैं।

तब वे दिन भर आपस में चर्चा करते शाम को इस नतीजे पर पहुंच जाते हैं कि आखिर वह कौन सा पाप था जिसके तार उन सबसे जुड़े हुए थे और तब उन्हें वह शख़्स नज़र आता है जिसके बदले का शिकार वे हो रहे थे। उन्हें यक़ीन हो जाता है कि वह जगह वाक़ई हांटेड थी और बदले के नाम पर उन्हें वहां मारने ही लाया गया था। उनकी तकलीफ, उनके संघर्ष और उनकी मौत को रिकार्ड करके शो के नाम पर पूरी दुनिया में बेचा जा रहा था।

वे जिंदगी से नाउम्मीद हो जाते हैं, लेकिन उस जगह से निकलने या टीबीसी टीम से लड़ने की उनकी हर कोशिश नाकाम हो जाती है।उनकी हर अगली रात कयामत साबित होती है और लगातार खौफ से जूझते सातवें दिन तक उनमें कई लोग मारे जाते हैं, लेकिन उनमें से किसी की भी जान सीधे शो वालों ने नहीं ली थी, बल्कि वे सभी अपनी ही वजहों से मारे गये थे… अब यहाँ सवाल उठता है कि क्या वाकई ऐसा ही था— जैसा उन्हें दिख रहा था, या फिर इस सारे तमाशे की जड़ में कुछ और था? क्या वाक़ई यह शो फेयर था या अपने किस्म का अनोखा बदला, जहां कोई अपने दुश्मनों को इस तरह खत्म भी कर रहा था और उन मौतों को करोड़ों में बेच भी रहा था? क्या था ‘द ब्लडी कैसल’ का सच? जानने के लिये पढ़िये… किताब अमेजाॅन, किंडल और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है..

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सावरी

  • ₹250.00
  • by Ashfaq Ahmad  (Author)
  • Book: Saavri
  • Paperback: 250 pages
  • Publisher: Gradias Publishing House
  • Language: Hindi
  • ISBN-13:  978-81-948718-3-5
  • Product Dimensions: 13.95 x 1.75 x 21.59 cm

यह कहानी सौमित्र बनर्जी की आत्मकथा के रूप में लिखा एक ऐसा दस्तावेज है, जो अंत में एक रोमांचक मोड़ के साथ जब अपनी परिणति पर पहुंचता है तो इस कहानी के उस मुख्य पात्र को यह पता चल पाता है कि रियलिटी में वह अपने कमरे के अंदर अपने बेड पर सोता ही रहा था, लेकिन एक वर्चुअल दुनिया में उसने एक ऐसे रहस्यमयी शख़्स सौमित्र बनर्जी के जीवन के बारे में सबकुछ जान लिया था— जो एक अभिशप्त जीवन को जीते हुए उसी के ज़रिये अपने जीवन से मुक्ति पाता है। 

कहानी में जो भी है, वह भले एक आभासी दुनिया में चलता है लेकिन कुछ अहम किरदारों का गुज़रा हुआ अतीत है— जिसमें क़दम-क़दम पर रहस्य और रोमांच की भरपूर डोज मौजूद है। सभी कैरेक्टर अपनी जगह होते तो वास्तविक हैं लेकिन वे रियलिटी में रहने के बजाय दिमाग़ के अंदर क्रियेट की गई एक वर्चुअल दुनिया में रहते हैं, जहां उनकी शक्तियां एक तरह से असीमित होती हैं।

यह एक ऐसे मैट्रिक्स की कहानी है, जो बाहर की हकीक़ी दुनिया में नहीं चलता, बल्कि दिमाग़ के अंदर बनाई गई ऐसी दुनिया में चलता है— जहां कहानी के मुख्य ताकतवर पात्र दूसरे किरदारों को उनकी मर्ज़ी के खिलाफ अपनी उस दुनिया में खींच लेते हैं, जहां वे उनके साथ रोमांस भी कर सकते हैं और उन्हें शारीरिक चोट भी पहुंचा सकते हैं। यहां तक कि वे उनकी जान भी ले सकते हैं।

अंग्रेज़ दम्पति के यहां पलते सौमित्र बनर्जी को उसके बीसवें बर्थडे की पार्टी कर के घर लौटने के दौरान एक रहस्मयी लड़की सावरी मिलती है, जो उसे उसके जन्म की हकीक़त बताती है। वह उसे उसके पिता के बारे में बताती है और खास उस दिन के लिये उसके पिता की तरफ़ से सुरक्षित की गयी डायरी तक उसे पहुंचाने में मदद करती है— जो उसके पिता सौमिक बनर्जी ने उसके लिये छोड़ी थी।

डायरी से उसे अपने पिता की हकीक़त पता चलती है कि वह कलकत्ते के एक रसूखदार परिवार से सम्बंधित था लेकिन अपने ऊलजलूल शौक के चलते परिवार से अलग हो गया था। उसने असम के अंदरूनी जंगलों में पाई जाने वाली एक मायावी शक्ति अगाशी को साधने में अपना जीवन ही दांव पर लगा दिया था और अपनी उस कोशिश के पीछे इस हाल में पहुंच गया था कि अब न ज़िंदों में ही रहा था न मुर्दों में।

उसके साथ अतीत में कुछ उसी के जैसे जुनूनी और काली शक्तियों को साधने के शौकीन लोगों ने, अगाशी को साधने की दिशा में एक ज़रूरी शक्ति पाने की गरज से अफ्रीका के गहरे अंधेरे जंगलों की यात्रा की थी, और उन आदमखोर आदिवासियों से वह ताक़त पाने की कोशिश में सौमिक बनर्जी के सिवा उसके सारे यात्री एक सहरअंगेज़ तजुर्बे के साथ मारे गये थे— लेकिन सौमिक वह ताक़त पाने में फिर भी कामयाब रहा था और अकेला ज़िंदा वापस लौटा था।

इसके बाद उसने असम के जंगलों की यात्रा की थी लेकिन वहां अगाशी की सत्ता चलती थी, जो वास्तविक दुनिया में कहीं थी ही नहीं। वह हज़ारों साल पहले मर चुकी एक ऐसी राजकुमारी थी जो एक अलग ही आयाम में रहती थी। उसके पास उन निशाचरों की एक बेहद खतरनाक सेना थी— जो उसके लिये लगातार शिकार लाते थे। वे सब शिकार इंसानों के ब्लड और फ्लेश पर पलते थे और इससे ही ताक़त हासिल करते थे और इसी तरह से वे ख़ुद को अमर बनाये हुए थे।

सौमिक उनसे लड़ने जाता है, अगाशी को साधने जाता है ताकि उसकी बेशुमार शक्तियां और अमरत्व हासिल कर सके… उसकी भरपूर कोशिश के बाद भी उसकी लड़ाई आधे-अधूरे में खत्म होती है। उसे अगाशी की शक्तियां तो नहीं मिलतीं, न ही अगाशी बाकी शिकारों की तरह उसे कंज्यूम कर पाती है— लेकिन उसे वह अमरत्व ज़रूर मिल जाता है, जो उसका एक लक्ष्य था… लेकिन उस अमरत्व के अभिशाप को जब सौमिक झेलता है तो उसे मुक्ति की ख्वाहिश पैदा हो जाती है और इसी ख्वाहिश के चलते उसने संयोग से पैदा हुए बेटे को अपने जीवन के अनुभवों से भरी डायरी के साथ कलकत्ते में सुरक्षित करता है।

अब वह वक़्त आ चुका था, जहां उसके बेटे सौमित्र को पिता का अधूरा काम पूरा करना था और अगाशी पर विजय हासिल करनी थी— और इसीलिये उसे अब असम के उन जंगलों में बुलाया जा रहा था। सावरी उसके पिता के दूत के तौर पर उसे बुलाने आई थी— लेकिन यह पूरा सच नहीं था। वह ख़ुद को इस तरह जाने के लिये तैयार नहीं कर पाता लेकिन रवानगी का वक़्त आने तक वह जैसे किसी जादू से तैयार हो जाता है— उसे अहसास नहीं हो पाता कि उसकी रवानगी में भी उसकी अपनी इच्छा का कोई रोल नहीं था बल्कि उसे कहीं और से तैयार किया गया था।

जब वह इस सफर पर निकलता है तब मलिंग के रूप में एक नये कैरेक्टर की एंट्री होती है, जो अपने चेलों के साथ उसे अपने सपनों में खींच लेता है और उसे मारने की कोशिश करता है। क़दम-क़दम पर उसकी तरफ़ से मिलती चुनौतियों के बीच सावरी लगातार उसकी मदद करती है और इन कोशिशों के अंजाम में उसे ख़ुद को साधने-संवारने के वह दुर्लभ मौके मिलते हैं कि वह अपने आप को अगाशी से मुकाबले के लिये तैयार कर पाता है।

अब असम के सफर पर आखिर किसने तैयार किया था उसे यूं अपनी ज़िंदगी दांव पर लगाने को? सावरी अगर वह नहीं थी, जो ख़ुद को जता रही थी तो फिर और कौन थी? और सौमित्र को अपने साथ ले जाने के पीछे उसका क्या मकसद था? मलिंग कौन था और भला वह सौमित्र की जान के पीछे क्यों पड़ा था? जो अगाशी वास्तविक दुनिया में थी ही नहीं, उसे जीतना भला कैसे संभव था? जहां वह थी, वहां बस उसी की मर्ज़ी चलती थी, वह उसी की बनाई आभासी दुनिया होती थी, जहां वह दूसरे वास्तविक दुनिया के लोगों को खींच कर कंज्यूम कर लेती थी— भला ऐसी शक्ति से कोई इंसान कैसे पार पा सकता था? सौमित्र के इस सफर का अंजाम क्या हुआ? क्या वह अगाशी जैसी ताक़त का सामना कर सका?

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मिरोव चैप्टर 3

  • ₹250.00
  • by Ashfaq Ahmad  (Author)
  • Book: Mirov Chapter 3
  • Paperback: 235 pages
  • Publisher: Gradias Publishing House
  • Language: Hindi
  • ISBN-13:  978-81-959837-0-4
  • Product Dimensions: 13.95 x 1.75 x 21.59 cm

वे सारे एक अलग यूनिवर्स में पहुंच तो गये थे लेकिन यह दुनिया उनकी देखी, जानी, समझी दुनिया से बिलकुल उलट थी, जो उनकी कल्पना से भी परे थी और चूंकि उनके दिमागों के लिये वह सब ऐसी नई चीज़ें थीं, जो उनके दिमागों की प्रोसेसिंग क्षमताओं से बाहर थीं तो वे उन चीज़ों को जाने-पहचाने खाके में फिट कर के देखते थे— जबकि हकीक़त में वे कुछ और होती थीं, जिसे वे ठीक से समझ ही नहीं सकते थे और इस वजह से भी वे कई बार ज़बर्दस्त धोखा खाते हैं। सच यह था कि उनका दिमाग़ उन्हें जो भी दिखा रहा होता था, वह जितना सच होता था— उतना ही काल्पनिक भी होता था।

उस यूनिवर्स में कोई स्पेस नहीं था, मगर असीम दूरियां ज्यों की त्यों थीं और उन्हें उनके अपने यूनिवर्स की तरह इन दूरियों को तय करने के लिये वैसे साधनों की ज़रूरत नहीं थी, जो वह जानते थे बल्कि वहां तो पृथ्वी वासियों के हिसाब से पलक झपकते ही वे दूरियों को तय कर लेते थे। उस पूरे यूनिवर्स में अलग-अलग पॉकेट बने हुए थे और लगभग हर पॉकेट में कोई न कोई प्रजाति अपना वर्चस्व कायम किये थी लेकिन पस्कियन, ग्रेवोर्स और स्कैंडीज के रूप में वहां तीन प्रजातियां ऐसी भी थीं, जो कुल मिला कर आधे से ज्यादा यूनिवर्स को कब्ज़ाये थीं और आपस में एक दूसरे की कट्टर प्रतिद्वंद्वी थीं।

उन सबके बीच एक छोटे पॉकेट में एक ऐसी प्रजाति एड्रियूसिनॉस भी थी, जो वैज्ञानिक तौर पर सबसे ज्यादा तरक्कीशुदा थी। वे बाकियों से बहुत आगे का ज्ञान रखते थे… उन्हें अपने उस यूनिवर्स में खामी लगती थी और वे इस डिजाइन को और बेहतर करना चाहते थे। इस सिलसिले में उन्होंने सालों के जतन से एक ऐसा कॉस्मिक इंजन तैयार किया था जो उनके यूनिवर्स को रीडिजाइन कर सकता था, लेकिन  परीक्षण के दौरान पता चलता है कि वह शैडो यूनिवर्स को कोलैप्स कर सकता था। इसी एक्सपेरिमेंट की वजह से उस शैडो यूनिवर्स में तीस करोड़ लाईट ईयर्स में फैला ‘द बूटीस वायड’ बना था।

यह जान कर वे इस त्रुटि को दूर करने में जुट जाते हैं, लेकिन इस एक्सपेरिमेंट की वजह से इस कॉस्मिक इंजन की ख़बर पस्कियन, ग्रेवोर्स और स्कैंडीज को भी हो जाती है और वे पहले तो यूनिवर्स को रीडिजाइन करने के ही खिलाफ थे, फिर यह होता भी तो वे इसे अपने हिसाब से डिजाइन करना चाहते थे… इसी बिना पर तीनों आपसी प्रतिद्वंदिता भुला कर एक साथ एड्रियूसिनॉस पर हमला कर देते हैं। उनके बीच उनके अपने यूनिवर्स के इतिहास का सबसे भयानक युद्ध होता है, जहां वैज्ञानिक तरक्की में सबसे आगे होने के बावजूद भी वे तीनों प्रतिद्वंद्वियों की संयुक्त ताक़त के आगे हार जाते हैं और उन्हें पूरी तरह तबाह कर दिया जाता है।

लेकिन अपनी निश्चित हार देख कर वे उस कॉस्मिक इंजन को चार हिस्सों में तोड़ देते हैं, ताकि वह असेंबल हो कर ही एक्टिव हो सके और उन चार हिस्सों को अपने यूनिवर्स के चार बीहड़ और सबसे ख़तरनाक इलाकों में छुपा देते हैं… तब उन्हें उम्मीद होती है कि एक दिन वे फिर संवरेंगे, वापसी करेंगे और रीयूनाइट हो कर दुबारा अपने अधूरे काम को पूरा करेंगे। उन्हें तबाह कर चुकने के बाद पस्कियन, ग्रेवोर्स और स्कैंडीज उन पार्ट्स की तलाश में निकलते हैं और एक-एक पार्ट हासिल करने में कामयाब रहते हैं— लेकिन इस तरह वह किसी एक के काम का नहीं था और तीनों कभी एक मंच पर आना नहीं चाहते थे इस मकसद के लिये कि किसी तरह उस चौथे पार्ट को भी हासिल किया जाये और किसी एक के हिसाब से यूनिवर्स को रीडिजाइन किया जाये।

एक लंबी शांति के बाद वे इन पार्ट्स को एक दूसरे से हासिल करने की कोशिश शुरू करते हैं, जिनमें स्कैंडीज और ग्रेवोर्स का लक्ष्य तो अपने हिसाब से यूनिवर्स को डिजाइन करना था, जबकि पस्कियन इसलिये उस कॉस्मिक इंजन को हासिल करना चाहते थे क्योंकि वे यूनिवर्स में कोई बदलाव नहीं चाहते थे और इसकी वजह से इंसानों वाला यूनिवर्स भी कोलैप्स हो जाता जो उन्हें मंजूर नहीं था… तो वे उन इंसानों की मदद इसीलिये चाहते थे कि वे उस यूनिवर्स में अनएक्सपेक्टेड और अनकनेक्टेड जीव थे जो उन बाकी पार्ट्स को हासिल करने में कारगर साबित हो सकते थे।

लेकिन जब आँखों का देखा सबकुछ सच नहीं था और दिमाग़ काफी कुछ अपनी तरफ से गढ़ा व्यू उन्हें दिखाता था— तो क्या गारंटी थी कि उनके कान जो कुछ सुन रहे थे और दिमाग़ जो समझ पा रहा था, वह उतना ही रियल था जितना उन्हें लग रहा था। उसमें भी तो काफी कुछ भ्रम और छलावा साबित होने की गुंजाइश थी… और अंत-पंत सच भी यही तो साबित हुआ था।

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मिरोव चैप्टर 2

  • ₹250.00
  • by Ashfaq Ahmad  (Author)
  • Book: Mirov Chapter 2
  • Paperback: 245 pages
  • Publisher: Gradias Publishing House
  • Language: Hindi
  • ISBN-13:  978-81-959837-2-8
  • Product Dimensions: 13.95 x 1.75 x 21.59 cm

केविन के रूप में अचानक एक ऐसा आदमी नज़र में आता है जो सौ साल पहले किसी इनक्वायरी पर निकला था, लेकिन ग़ायब हो जाता है और लगभग सौ साल बाद प्रकट होता है, जबकि उसके हिसाब से उसने चार दिन का वक्त ही कहीं गुमशुदगी में गुजारा था… अब ऐसा कैसे था, यह समझने के लिये सेटी (सर्च फॉर एक्स्ट्रा टेरेस्ट्रियल इंटेलिजेंस) सिंथिया के नेतृत्व में एंशेन्ट एस्ट्रोनॉट थ्योरिस्ट के कुछ लोगों को मिला कर एक मिशन लांच करती है और वे केविन को ले कर एलियन एक्टिविटीज के सबूत खोजने वापस कुमाऊँ की घाटियों में पहुंचते हैं।

एमसाना की डूबी रकम की रिकवरी के लिये एवलिन के बनाये दबाव के रियेक्शन में वह अमेरिकी ताकतवर लॉबी एकदम पलटवार करते एमसाना और मथायस के खिलाफ एक्शन शुरू करवा देती है और एमसाना से एक सीधी जंग शुरू हो जाती है जिसमें जंग का मैदान न्यूयार्क शहर बनता है और इस जंग का खात्मा भी एक ऐसी एंटिटी के दखल से होता है जो इस दुनिया की तो नहीं थी— और जो उन्हें भविष्य के खतरों के प्रति सचेत करने की कोशिश कर रही थी।

बेनवॉ कार्प्स वालों ने एक दूसरे मिरोव फ्रेंको के रूप में अपना खुद का एक एडगर तैयार कर लिया था, जो उन्हें शकराल की घाटी तक पहुंचा सकता था और वे एमसाना से अमेरिकियों की जंग छिड़ने के साथ ही अपनी टीम भारत के लिये रवाना तो कर देते हैं— मगर खुद इस जंग की बड़ी कीमत चुकाते हैं, जबकि एवलिन लाख कोशिश के बावजूद अमेरिकन गवर्नमेंट के हत्थे नहीं आती और एडगर समेत अपनी उस टीम को अमेरिका से निकाल ले जाती है जिसे शकराल पहुंचना था।

करीब चार सौ साल बाद एक ऐसा इवेंट फ्रांस सरकार की नज़र में आता है, जहां वे धरोहरें बेची जा रही थीं जिन्हें चुरा कर कभी शकराल ले जाया गया था और तब से वे दुनिया की नज़रों से छुपी रही थीं… और यह सब सामने आता है एक खरीदार की हत्या से, जिसके बाद वे इंग्लैंड और नीदरलैंड के साथ मिल कर एक संयुक्त मिशन लांच करते हैं जो इन नीलामियों के कर्ता-धर्ता का पता लगायें और उनसे अपनी चीज़ें वापस हासिल करें। इस व्यक्ति के तार भी भारत और नार्थ कुमाऊँ से जुड़ते हैं और उनकी टीम को भारत की यात्रा करनी पड़ती है।

मीडियम में छपे एक आर्टिकल से गंगा, राणा और सारंग के साथ शकराल की सारी स्टोरी दुनिया की नज़र में आ जाती है और तब भारत को भी इसमें दिलचस्पी लेनी पड़ती है, लेकिन उनकी जानकारी के हिसाब से नार्थ कुमाऊँ में न ही शकराल नाम की कोई जगह थी और न ही उनकी जानकारी में सारंग नाम का ऐसा कोई आदमी था, जो सैकड़ों साल जिंदा रहा हो, लेकिन जब उन घाटियों में इतने लोग दिलचस्पी ले रहे थे तो वे पीछे नहीं हट सकते थे और वे भी एक मिशन लांच करते हैं— इन बातों की सच्चाई परखने के लिये।

अब नार्थ उत्तराखंड में वे पांच अलग-अलग पार्टियां पहुंचती हैं और सही डेस्टिनेशन की तलाश में भटकते एक दूसरे से भिड़ती रहती हैं, लेकिन उनके सफ़र का खात्मा जहां होता है, वहां यह दुनिया ही खत्म थी और वहीं से शुरुआत होती है एक ऐसी नई दुनिया की, जो उनकी कल्पनाओं से भी परे थी। जिसके बारे में उन्होंने किसी वैज्ञानिक के मुंह से भी कभी ऐसा कुछ नहीं सुना था और जिसे ठीक से समझने के लिये उन्हें खुद भी ट्रांसफार्म होना पड़ता है।

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MIROV/मिरोव CHAPTER 1

सोचिये कि एक दिन आप नींद से जागते हैं और पाते हैं कि आप उस दुनिया में ही नहीं हैं जो आपने सोने से पहले छोड़ी थी तो आपको क्या महसूस होगा… सन दो हजार बत्तीस की एक दोपहर न्युयार्क के मैनहट्टन में एक सड़क के किनारे पड़ी बेंच पर जागे एडगर वैलेंस के साथ कुछ ऐसा ही हुआ था।

वह जिस जगह को और जिस दुनिया को देख रहा था वह उसने पहले कभी नहीं देखी थी, जबकि वह अपने आईडी कार्ड के हिसाब से न्युयार्क में रहने वाला एक अमेरिकी था… उसे यह नहीं याद था कि वह अब कौन था लेकिन धीरे-धीरे उसे यह जरूर याद आता है कि वह तो भारत के एक गांव का रहने वाला था और वह भी उस वक्त का जब मुगलिया सल्तनत का दौर था और अकबर का बेटा जहांगीर तख्त नशीन था।

उसे न सामने दिखती चीजों से कोई जान पहचान थी और न ही खुद की योग्यताओं का पता था लेकिन फिर भी सबकुछ उसे ऐसा लगता था जैसे वह हर बात का आदी रहा हो जबकि उसके दौर में तो न यह आधुनिक कपड़े पहनने वाले लोग थे, न गाड़ियां और न उस तरह की इमारतें। उसने कभी तलवार भी न उठाई थी मगर उसका शरीर मार्शल आर्ट का एक्सपर्ट था।

उसके घर में जो लड़की खुद को उसकी बीवी बताती थी, उसे कभी उसने देखा ही नहीं था… उसके लिये एकाएक सबकुछ बदल गया था, उसका देश, उसकी जमीन, उसके लोग और यहां तक कि उसका अपना शरीर और जेंडर भी… फिर कुछ इत्तेफ़ाक़ों के जरिये वर्तमान जीवन का कुछ हिस्सा उसे याद आता भी है तो कई ऐसे लोग उसके पीछे पड़ जाते हैं जिनका दावा था कि उसने न सिर्फ उनके सिंडीकेट के एक मुखिया को खत्म किया था बल्कि उनके टेन बिलियन डॉलर भी पार किये थे… जबकि वह पूरी तरह श्योर था कि उसने कभी उन लोगों को देखा तक नहीं था।

इतना कम नहीं था कि उसे अपने बीते दौर का एक पेचीदा सवाल और उलझा देता है कि दुनिया भर से लूटा गया कुछ बेशकीमती जवाहरात और कलाकृतियों पर आधारित एक ऐसा खजाना भी उसकी जानकारी में कहीं दफन हुआ था जिसके पीछे न सिर्फ डच, फ्रांसीसी और ब्रिटिश सिपाही और जासूस पड़े थे बल्कि कुछ चीनियों के साथ भी उसी के पीछे उसकी सांठगांठ हुई थी लेकिन जिनके पीछे उसे मौत के मुंह में पहुंचना पड़ा था।

अब उस खजाने का जिक्र तक कहीं नहीं मिलता और न ही इतिहास में ऐसा कोई जिक्र मिलता है कि किसी के हाथ ऐसा कुछ लगा हो… हां— फ्रांस, ब्रिटेन के कुछ दस्तावेजों से इस बात का पता तो चलता है कि ऐसा कोई खजाना उस वक्त जिक्र में था लेकिन उन्होंने उसे बस अफवाह माना था। तो सवाल यह था कि अगर वह किसी के हाथ नहीं लगा तो उसे अभी भी वहीं होना चाहिये जहां उसे छोड़ा गया था… और इत्तेफाक से वह जगह उसे याद थी। उसे उस जगह का वो मालिक भी याद था जो खुद को उस तिलस्म का दरोगा कहता था जहां वह खज़ाना दफ़न था और खुद अपनी उम्र दो सौ साल की बताता था।

लेकिन उसका चार सौ साल बाद जागना और उस दौर की एक अफवाह को सच साबित करना उन सरकारों के भी कान खड़े कर देता है जो उस पर अपना दावा जताते थे और फिर एक लंबी जद्दोजहद शुरू हो जाती है उसे हासिल करने की… लेकिन जहां वह बेशकीमती खजाना मौजूद था, वहां तो अब किसी और की हुकूमत थी और हुकूमत भी ऐसी वैसी नहीं बल्कि ऐसे लोगों की जो खुद दुनिया भर में लूटमार ही करते फिरते थे। साथ ही कई ऐसे सवाल अब वजूद में आ गये थे जो तब उन लोगों की समझ में नहीं आये थे लेकिन अब की आधुनिक दुनिया को देख कर कहा जा सकता था कि वे चीजें और वह जगह उस दौर में होने ही नहीं चाहिये थे लेकिन थे और क्यों थे, इसका कोई भी जवाब वहां किसी के पास नहीं था।

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JUNIOR GIGOLO/ जूनियर जिगोलो

जब सब उम्मीदें खो जायें, जब सारे सपने टूट जायें, जब हर वादा और भरोसा छल साबित हो और हालात यह बन जायें कि हाथ को रोजगार तो क्या दो पैसे कमाने के मौकों में भी अपार संघर्ष करना पड़े, तो व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी और भ्रामक प्रचार के सहारे बनाये भ्रम देर सवेर टूटते ही हैं और धीरे-धीरे छंटता है वह कुहासा जिसने एक इंसान के अंदर की इंसानियत भी इस हद तक सीमित कर दी थी कि एक दिन खुद से भी शर्मिंदा होना पड़े।

जूनियर जिगोलो एक ऐसे ही वक्त के मारे इंसान की कहानी है जिसकी दुनिया कुछ और थी मगर हकीकत के तूफानी थपेड़ों ने उसे उस जमीन पर ला पटका था जहां खुद या परिवार को खिलाने के लिये दो वक्त का खाना भी तय नहीं था कि मिलेगा या नहीं। ऐसे में खुदकुशी या समझौते के सिवा तीसरा कोई विकल्प नहीं बचता और वह मजबूरन समझौते के विकल्प को चुनता है और एक ऐसी दुनिया में कदम रखता है जहां अब तक औरतों का एकाधिकार समझा जाता था और वह मर्द वेश्याओं के बाजार में उतर कर अपनी पहचान बनाने की कोशिश करता है।

लेकिन यह उतना सहज और सरल नहीं था जितना बाहर से दिखता है। धंधा कोई भी हो, उसके सकारात्मक के साथ नकारात्मक पहलू होते ही हैं और उसे कदम-कदम पर इन संघर्षों से जूझना पड़ता है। आर्थिक मंदी और कोरोना आपदा ने जहां दुनिया के तमामतर लोगों के लिये हालात बेहद मुश्किल किये थे, उन्हें कंगाल कर के दो वक्त के खाने का भी मोहताज कर दिया था और बड़े पैमाने पर लोग खुदकुशी कर रहे थे… वहीं एक वर्ग ऐसा भी था जिसे इस आपदा में लूटने, पैसे बनाने के बहुतेरे मौके मिले थे और उनका जीवन स्तर पहले के मुकाबले बेहतर हो गया था और आर्थिक रूप से सम्पन्न ऐसे लोगों के बीच जिस्मफरोशी के इस बाजार की गुंजाइश बेतहाशा बढ़ गयी थी।

शारीरिक जरूरतों के मारे सिर्फ मर्द ही नहीं होते बल्कि औरतें भी होती हैं, दोनों की परिस्थितियों में फर्क भी हो सकता है और वे समान भी हो सकती हैं लेकिन यह तय है कि अब अपनी इच्छाओं का दमन कर के वे सक्षम औरतें घुट-घुट कर जीना नहीं चाहतीं और उन्होंने खरीद कर वह खुशी हासिल कर लेने की कला सीख ली है और उनकी जरूरतों के मद्देनजर एक आर्गेनाईज्ड बाजार भी खड़ा हो गया है जहां हर बड़े शहर में स्पा, पार्लर, डिस्कोथेक, क्लब, काॅफी हाऊस जैसी जगहें हो गयीं हैं या सरोजनी नगर, कमला नगर मार्केट, पालिका बाजार, लाजपत नगर, जनकपुरी डिस्ट्रिक्ट सेंटर जैसी कई ओपन मार्केट मौजूद हैं, यहां बाकायदा जिगोलो ट्रेनर, कोऑर्डिनेटर, एंजेसीज और कंपनी तक अपनी हिस्सेदारी के लिये मौजूद हैं और एक तयशुदा कमीशन पर नये-नये लड़के यह काम धड़ल्ले से कर रहे हैं।

इन हालात से गुजरते वह शख्स न सिर्फ एक नई अनजानी दुनिया से दो चार होता है बल्कि धीरे-धीरे उसके पाले वे भ्रम भी दूर होते हैं जो धर्म को सिरमौर रखते उसने बना लिये थे लेकिन यह रास्ते आसान नहीं थे। अपनी आत्मग्लानी और अपराधबोध से जूझता वह अपनी गलतियों को सुधारने की कोशिश करता है तो एक के बाद एक समस्याओं में फंसता चला जाता है जो उसके लिये एक बड़ी लंबी और भयानक रात जैसी साबित होती हैं लेकिन वह हार नहीं मानता और उजाले की देहरी तक पहुंच कर एक नये सूरज का सामना करके ही दम लेता है जहां अपने अंदर का सब मैल निकाल कर अब वह एक बेहतर इंसान बन चुका था जिसका धर्म सिर्फ इंसानियत थी।

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गिद्धभोज

गिद्धभोज‘ कोई एक कहानी नहीं है, बल्कि पच्चीस कहानियों का संगम है। यह वे कहानियां हैं जो सीधे हमसे जुड़ी हैं, हमारे आसपास मौजूद माहौल से जुड़ी हैं— हमारी परेशानियों, हमारी जड़ विचारधाराओं, हमारे भूत और हमारे भविष्य से जुड़ी हैं। हर कहानी हमें झकझोरती है, एक सीख देती है, यह हम पे निर्भर करता है कि हम इनसे क्या सीख पाते हैं।   

गिद्धभोज‘ दो सेक्शन में है— पहले सेक्शन में जो कहानियां हैं वे मुख्य हैं, जबकि दूसरे सेक्शन में जो कहानियां हैं यह वे कहानियां हैं जो मैंने कभी न कभी सोशल मीडिया पर लिखी हैं लेकिन आपको इधर-उधर किसी और के नाम से भी नाचती मिल सकती हैं। उन्हें इस संग्रह में इसलिये शामिल किया गया है ताकि उन्हें एक जायज पहचान मिल सके।   

मुख्य कहानियों में ‘गिद्धभोज‘ है जो ‘अन्नदाता’ के भारी भरकम मगर खोखले विशेषण से नवाजे गये एक ऐसे किसान की कहानी है जो भुखमरी के कगार पर है और अपना जीवन खत्म कर लेने पर उतारू है लेकिन किस्मत उसे एक मौका देती है जहां उसे एक मुश्किल चयन करना पड़ता है कि वह एक मसीहा बन जाये या एक साधारण इंसान और वो साधारण इंसान ही बनना मंजूर करता है। 

अपराधबोध‘ एक ऐसे युवा की कहानी है जो सोशल मीडिया के भ्रामक प्रचार-प्रसार से भ्रमित, दिशाहीन हो कर अपने भविष्य से खिलवाड़ करता एक हत्यारा बन जाता है लेकिन उसका अपराधबोध उसे कहीं भी चैन नहीं लेने देता।   

‘सुर्खाब‘ मुस्लिम मआशरे में मौजूद लैंगिक भेदभाव को दर्शाती एक ऐसी कहानी है जहां एक लड़की अपने हक और बराबरी के मौके पाने के लिये लगातार जूझते हुए अपना घर तक छोड़ने पर मजबूर हो जाती है। 

अधूरी आजादी‘ इसी दौर के उस संघर्ष की कहानी है जहां पश्चिम की अंधाधुंध नकल के चक्कर में सामने दिखती पश्चिमी आजादी और अपने सेक्स प्रतिबंधित भारतीय समाज की वर्जनाओं के द्वंद्व में फंसी युवा पीढ़ी अपनी यौन कुंठाओं को तृप्त करने के पीछे छोटी-छोटी बच्चियों के शिकार से भी गुरेज नहीं कर रही।   

बदकिरदार‘ चरित्र से जुड़ी आकांक्षाओं और वर्जनाओं को ढोती हर उस औरत की दास्तान है जो अपने हिस्से का शायद एक पल भी अपनी इच्छा से नहीं जी पाती और यह चरित्र आधारित दमन उसे विद्रोह पर उकसा कर अंततः अपने मन की कर लेने पर मजबूर कर देता है। 

‘दो बूँद पानी‘ लगातार कम होते पानी के पीछे होने वाले उस संघर्ष की कहानी है जहां एक वक्त ऐसा भी आता है कि पानी की एक बूंद भी बेशकीमती हो जाती है और हम सभी को अंत पंत यह नर्क भोगना ही है। 

‘गर्म गोश्त का शौकीन‘ पैसे और पॉवर के गुरूर में सर से पांव तक डूबे उस शख्स की कहानी है जिसके लिये हर जनाना बदन बस एक ‘योनि’ ही है, इससे इतर कुछ नहीं।   

मजहबी कुफ्र‘ किसी भेड़ समान व्यवहार करती प्रजाति के बीच से निकल पाने वाले ऐसे जीव की कल्पना है जो परंपरागत और रूढ़ियों में जकड़ी विचारधाराओं के बंधन से खुद को आजाद कर के इंसान बन पाता है। 

जंगल का आदमी‘ हर उस मूल मानव की दास्तान है जो अपनी जमीन और जंगल को बचाने के लिये विकास के नाम पर खड़े हुए पूंजीवादी सिस्टम से टकरा रहा है। 

पगली‘ जाति और धर्म आधारित जड़ आस्थाओं के खिलाफ जाती एक ऐसी प्रेम कथा है जहां रूढ़ियों से जकड़ी मशीनें इंसानी रिश्तों की अहमियत समझने की जगह उसे खत्म कर देने पर उतारू हैं।    

जामुन की छाँव‘ उस दौर की कथा है जहां बेशुमार बढ़ती आबादी की जरूरतों के मद्देनजर हरियाली की बलि लेते-लेते हम अपने इको सिस्टम को ही वेंटिलेटर पर पहुंचा देते हैं। 

आकर्षण‘ कलर बायसनेस को ले कर रची एक कथा है जिसमें एक सांवली लड़की इस सामाजिक पूर्वाग्रह को खुद पर झेलते इस तरह बड़ी होती है कि अपनी ख्वाहिशें दर्शाने के लिये भी उसे दूसरों से ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। 

खामोश बगावत‘ संविधान प्रदत्त उस सुविधा का एक ऐसा पहलू है, जिसकी तरफ बहुत कम लोग देखते हैं कि कैसे ब्राह्मणवादी व्यवस्था के खिलाफ लड़ी जाने वाली लड़ाई खुद उसी विकार से संक्रमित हो रही है।   

इद्दत एक व्यथा‘ इस्लामिक मान्यताओं में से एक मान्यता के उस स्याह पहलू को दर्शाती है जहां एक औरत के लिये इम्तिहान ही इम्तिहान हैं तो मर्दों के लिये इसी मरहले पर एक रत्ती आजमाईश नहीं। यह अप्रासंगिक हो चुके रिवाजों को संशोधित करने के लिये की जाने वाली लड़ाई है जो औरत को अकेले लड़नी पड़ती है। 

गुमराह‘ आज की उस युवा पीढ़ी के लिये एक आइना है जो अपनी आजाद जिंदगी और सुविधाभोगी प्रवृत्ति के चलते, नैतिक अनैतिक की बहस में पड़े बगैर हर कदम उठा लेने पर उतारू है, फिर चाहे वो कदम उसके भविष्य को बर्बाद कर देने वाला हो या उसे मौत के मुंह तक ले जाने वाला हो।

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इनफिनिटी: द साइकिल ऑफ़ सिविलाइजेशन

यह कहानी है ग्रैडिअस नाम के एक ऐसे ग्रह की जो हमारी ही दुनिया के समरूप है, जहाँ वे इंसान हैं जिनकी पहचान कैथियंस के रूप में होती है। वे हमारे जैसे न हो कर भी हमारे ही जैसे हैं। उनकी दुनिया में भी धर्म और विज्ञान का सतत वैचारिक संघर्ष है।  उनकी भी ठीक पृथ्वी जैसी ही मत मान्यतायें हैं… कि यह दुनिया, यह यूनिवर्सल सिस्टम किसी बेंडौरह या एलाह जैसी ईश्वरीय शक्ति ने बनाया है और उसने क्रिस्टोफर और एडविना के रूप में दो कैथियंस ग्रैडिअस पर भेजे थे जिनसे समस्त कैथियंस का जन्म हुआ।

लोग उसी ईश्वरीय शक्ति की इच्छानुसार कर्म करने पर मजबूर हैं लेकिन उसने अच्छाई और बुराई चुनने की छूट दे रखी है और उसी आधार पर कयामत के दिन सबका फैसला करके उन्हें हैवियन यानि स्वर्ग का सुख या शुबूगा यानि नर्क की सजा दी जायेगी। उनके बीच भी अलग-अलग धर्म हैं जैसे इस्लाम के समकक्ष फरायम, हिंदुत्व के समकक्ष वेयराइज्म, क्रिशचैनिटी के समकक्ष निब्रसिज्म या बुद्ध, महावीर, मुहम्मद, ईसा, मूसा, इब्राहीम, नूह के समकक्ष वूडो, वांगटी, थास्बट, बबूसा, रूजा, माइल, लूआ जैसे पैगम्बर और एलाह, बैंडोरह जैसे अलग-अलग मान्यताओं में अलग-अलग संबोधन वाला ईश्वर।

उनमें हममें एक फर्क है कि हम अभी विकास से विनाश की ओर अग्रसर अपने अंत तक पहुंचने के सफर में हैं और वे हमसे कई सौ साल आगे उस प्वाइंट तक पहुंच चुके हैं जहाँ उन्होंने तरक्की तो बहुत कर ली है लेकिन ठीक इंसानी तर्ज़ पर विकास और तकनीक की भूख के चलते अपनी खूबसूरत दुनिया को विनाश की कगार पर पहुंचा दिया है और अब ग्रैडिअस पर कैथियंस के सर्वाइवल की कोई कंडीशन नहीं बची और वे किसी नये ठिकाने की तलाश में हैं।

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