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जिहादी परिंदे

काफी पहले एक स्क्रिप्ट के साथ एक पब्लिशर महोदय से मिला था.. स्क्रिप्ट देखते ही उन्होंने पहला सवाल पूछा था कि इसमें सेक्स कितना है? मुझे अटपटा लगा था, क्योंकि मैं उस तरह की चीजें लिखता नहीं था.. सो जाहिर है कि मैंने नकारात्मक प्रतिक्रिया दी थी और उनका कहना था कि आजकल मार्केट में तो यही चल रहा है, बिना इसके किताब कैसे बिकेगी। बेहतर है कि ऐसी किताब लिखो जिसमें आज की युवा पीढ़ी के लिये भरपूर मसाला हो।

उनकी बात मुझे अजीब लगी कि अच्छी भली कहानी में क्यों सेक्स मटेरियल घुसाया जाये लेकिन फिर थोड़ा चेक किया तो अंदाजा हुआ कि वाकई मार्केट मटेरियल वही था, जिसकी डिमांड थी।

तो फिर इस चीज को ध्यान में रखते हुए एक कहानी लिखी थी जो एकदम फुल मार्केट मटेरियल थी.. लेकिन फिर कई बार खुद पढ़ने के बाद देने की हिम्मत नहीं पड़ी तो उसे ठंडे बस्ते में ही डाल दिया था।

पर अब फिर इसी फील्ड में पैर जमाने की कोशिश कर रहा हूँ तो सोचा कि क्यों न इसी के साथ शुरुआत की जाये, अब तो चेतन भगत जैसे बड़े कद के लेखक भी यह सब लिख लेते हैं और लोगों को स्वीकार भी है। हालांकि इसके बाद उस तरह के दृश्य काफी एडिट कर दिये लेकिन ‘मार्केट मटेरियल’ तो अब भी है।

वस्तुतः यह कहानी एक सेक्सुअली सिक भारतीय बंदे की है जिसके लिये हर किस्म और हर उम्र/चमड़ी/साईज/शेप की औरत एक लजीज डिश थी और उसकी जिंदगी का सारा रोमांच उन्हीं में था। पश्चिम की लड़कियों और आजादाना जिंदगी का क्रेज उसके लिये एक पागलपन था, जिसके लालच में वह लखनऊ से अमेरिका तक का सफर कर लेता है.. जहाँ उसे एन वैसी ही भरपूर लज्जत मिली थी, जिसका वह भूखा था लेकिन अनजाने में ही वह दो गोरी चमड़ी वाली मैमों की साजिश का शिकार बन जाता है और उसके माथे पर कई हत्याओं का दाग लग जाता है।

इससे बचने की कोशिश में एक ऐसे टेररिस्ट ग्रुप के चक्कर में फंस जाता है जो एक बड़े आत्मघाती हमले की प्लानिंग कर रहा था.. हाँ उसके आसपास उसकी पसंद की औरतें हर तरफ थीं और उसे हासिल भी थीं और वही थीं जो उसके बचाव की हर कोशिश को नाकाम कर देती हैं।

खैर आगे जानने के लिये पढ़ लें तो बेहतर रहेगा 😉😉

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